
भिवंडी में आगामी विश्व आदिवासी दिवस 2025 की तैयारियां जोरों पर
- महेंद्र कुमार (गुडडू), ब्यूरो चीफ भिवंडी
- Jul 13, 2025
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कोंबडपाडा से छत्रपति शिवाजी चौक तक निकलेगी भव्य रैली, पारंपरिक कला और संस्कृति का होगा प्रदर्शन
भिवंडी। हर वर्ष 9 अगस्त को मनाया जाने वाला विश्व आदिवासी दिवस इस बार भिवंडी तालुका में भव्य और पारंपरिक स्वरूप में मनाया जाएगा। इस दिवस का उद्देश्य आदिवासी समाज के हक, संस्कृति, परंपरा और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना है। इसी क्रम में भिवंडी शहर और ग्रामीण क्षेत्र के सभी आदिवासी समाजों ने मिलकर उत्सव को बड़े स्तर पर आयोजित करने की तैयारी शुरू कर दी है।
हाल ही में कोंबडपाडा स्थित गावदेवी मंदिर परिसर में हुई एक बैठक में यह निर्णय लिया गया कि आगामी 9 अगस्त 2025 को विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य में एक विशाल रैली निकाली जाएगी। यह रैली गावदेवी मंदिर से प्रारंभ होकर छत्रपति शिवाजी महाराज चौक तक जाएगी। रैली के माध्यम से आदिवासी समाज की पारंपरिक वेशभूषा, नृत्य, कला और सांस्कृतिक विरासत का भव्य प्रदर्शन किया जाएगा। शिवाजी चौक पहुंचने के बाद रैली का समापन एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में होगा, जिसमें मंच पर समाज के मान्यवरों द्वारा मार्गदर्शनपरक भाषण दिए जाएंगे। साथ ही आदिवासी नृत्य, पारंपरिक गीत-संगीत और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी होंगी। इस आयोजन को सफल बनाने के लिए भिवंडी तालुका के समस्त आदिवासी समाज द्वारा सुनियोजित और संगठित रूप से कार्य किया जा रहा है। यह कार्यक्रम लगातार दूसरे वर्ष आयोजित किया जा रहा है। कार्यक्रम की तैयारी के लिए नई कार्यकारिणी का गठन भी कर लिया गया है और जल्द ही सभी पदाधिकारियों की नियुक्ति पूर्ण की जाएगी।कार्यकारिणी में राम मोरघा को अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। उपाध्यक्ष के रूप में सुभाष (नाना) झलके, सुनील गुंड, गणेश कोलेकर और शिवा मांगात को जिम्मेदारी सौंपी गई है। मिलिंद गवे को सेक्रेटरी और अमोल मुकणे को सह-सेक्रेटरी बनाया गया है। खजिनदार का दायित्व राहुल झलके को मिला है, जबकि सह खजिनदार के रूप में निलेश नामकोडे का चयन किया गया है।सलाहकार मंडल में महादेव घाटाल, मनोहर उथले, जयेश डोंगरे, दत्तू कोलेकर और प्रकाश तेलिवरे का समावेश किया गया है। कार्यक्रम की प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी सुनील झलके को सौंपी गई है।आयोजकों ने भिवंडी के सभी नागरिकों से अपील की है कि वे इस आयोजन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें और आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धरोहर को जानें और सम्मान दें।
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