
नरसिंहगढ़ में साहित्यिक समागम कार्यक्रम हुआ संपन्न
- राजेंद्र यादव, ब्यूरो चीफ, मध्यप्रदेश
- Aug 11, 2025
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नरसिंहगढ़, राजगढ़ । साहित्य जगत नरसिंहगढ़ के एक दिवसीय साहित्यिक समागम कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्री अशोक व्यासजी भोपाल ने साहित्य को भावों और संवेदनाओं का पर्यायवाची बताया।कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में आए श्री द्विवेदी ने वर्तमान परिवेश में साहित्य की आत्मा को जीवित रखने को साहसिक कदम बताया। कार्यक्रम में पधारे अतिथि कवियों में श्री सुरेश जायसवाल सीहोर,श्री दुबे सारंगपुर,श्री महेंद्र वत्स छापीहेड़ा,श्री कन्हैया राज ब्यावरा,श्री राजेंद्र साहिल ब्यावरा,श्री अरुण आजाद ब्यावरा,श्री गोपाल दुस्तर ब्यावरा,श्री लक्ष्मीचंद चौधरी कुरावर,श्री राजेश व्यास बोड़ा उपस्थित रहे।कार्यक्रम में नरसिंहगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार श्री विनोद रायसरा,श्री वल्लभ शर्मा,श्री मोहन सिंह अनंत,श्री प्रमोद चौबे,श्री प्रहलाद शर्मा,श्री इश्तियाक जैदी ने भी भागीदारी की।इस अवसर पर साहित्य प्रेमी श्री राजेंद्र प्रसाद शर्मा,श्री महेश शर्मा,श्री प्रकाश साहू,श्री मानवेंद्र उमठ उपस्थित रहे।दो सत्रों में आयोजित कार्यक्रम में "वर्तमान साहित्यिक वातावरण-चिंतन,चुनौती और सुधार" पर आगंतुक अतिथियों ने चर्चा की।द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी में कवियों ने विभिन्न विषय पर अपनी प्रतिनिधि रचनाएं प्रस्तुत की।
कार्यक्रम में सरस्वती वंदना "हे शारदे मां" के साथ साथ कविवर प्रहलाद शर्मा ने अपनी रचना"प्रतिपल में गीत प्रेम के ही गुनगुनाता हूं"की प्रस्तुति दी, वहीं स्थानीय कवि मोहनसिंह अनंत ने वर्तमान में परिवार में बढ़ रही वैमनस्यता पर कटाक्ष करते हुए अपना मुक्तक"झगड़ों संग परिवार टूटता,घर होता बेगाना है"पेश की।गोष्ठी को गति देते हुए श्रृंगार के कवि श्री कन्हैया राज ने अपने गीत"तेरी यादों को गाते रहेंगे,जब तलक दुनियादारी रहेगी"की अपनी मधुर आवाज़ में गाकर माहौल को गीतमय बना दिया।इसी क्रम में समसामयिक कवि महेंद्र वत्स की कविता"मनवा देख ले तेरी साख,मरने पर माटी हो या राख"ने जीवन और मृत्यु के सच्चाई को प्रदर्शित किया।आशुकवि श्री राजेश व्यास की रचना"पानी पानी पानी रे,जन जन की जिंदगानी रे"ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।गोष्ठी में सीहोर से पधारे कविवर श्री सुरेश जायसवाल ने अपने फकीरी अंदाज का परिचय देते हुए अपनी कविता"कभी जिक्र किया नहीं हमारे हुनर का इन सुलतानों ने"से कलमकार के स्वाभिमान को ज़िंदा कर दिया।समीक्षक एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री वल्लभ शर्मा की पंक्तियों"तू स्वयं अपनी खूबियों को ढूंढ,खामियां निकालने को लोग हैं ना"से सामाजिक व्यवस्था को साहित्य की कसौटी पर कसा।
कवि एवं ज्योतिषी श्री लखन चौधरी ने अपनी रचना"करीब आओ मेरे दिलबर के ये सावन का मौसम है"का पाठ कर सावन की मधुर बेला की अपने शब्दों में पिरोया।वरिष्ठ साहित्यकार श्री विनोद रायसरा की ये पंक्तियां "तुम कह रहे धरा पर भगवान ला के देखो,मै कह रहा फ़क़त तुम इंसान ला के देखो"ने गोष्ठी को बहुत ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया।उर्दू के शायर जनाब इश्तियाक जैदी ने अपने आशयारो"इन दर्दों का रिश्ता जो बना रहता है,तभी इंसान इंसान बना रहता है"से मानवीय मूल्यों के महत्व को बतलाया।बेबाक कवि श्री अरुण आजाद ने "जिनकी चादर में काले खून के धब्बे है,उनके हिस्से में सारे चांद सितारे है"की प्रस्तुति करके आज की व्यवस्था को आईंना दिखाया।सारंगपुर से आए बुजुर्ग कवि श्री दुबे जी ने अपनी चतुष्पदी काव्य"हमको जो बेकार समझ रक्खा है,हमने भी तूफान सहेज रक्खा है"ने घर के वृद्ध लोगों की करुण आवाज़ को प्रकट किया।फिल्मी लेखक और कवि श्री गोपाल दुस्तर ने अपने फिल्मी अंदाज में अपना मधुर गीत"तुम्हारी यादों के ख्वाबों की कसम,रात को चांद ज़मीं पर देखा"प्रस्तुत किया।इसी क्रम में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री अशोक व्यासजी ने अपने अलग ही अंदाज में व्यंग्यों के माध्यम से गोष्ठी को अनंत ऊंचाइयां प्रदान की।आपकी वर्तमान स्थिति में "मै और मेरा मोबाइल आपस में बाते करते है" को श्रोताओं द्वारा खूब सराहा गया। कार्यक्रम का संचालन शाहिद सैफी ने किया।अंत में आभार श्री प्रहलाद शर्मा ने व्यक्त किया।
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