
सवर्ण समाज की डूबती नैया पार करेगा कौन, जातिवाद की जब बोलबाला है तो क्यों पड़े हो मौन - कुमार चन्द्र भुषण
- आशुतोष कुमार सिंह, ब्यूरो चीफ बिहार
- Jul 14, 2025
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क्या जिनकी जनसंख्या कम हो वो स्वतंत्र नहीं हैं,
कैमूर-- जिला के राष्ट्रीय राजमार्ग 19 नगर पंचायत कुदरा स्थित राष्ट्रीय सवर्ण समाज संघ प्रदेश कार्यालय पर एक औपचारिक भेंट के दौरान राष्ट्रीय सवर्ण समाज संघ प्रदेश अध्यक्ष सह स्वतंत्र कलमकार कुमार चन्द्र भुषण तिवारी के द्वारा राष्ट्र में बढ़ती जातिवाद की जहर व दिन प्रतिदिन जातिगत कानूनों कि बढ़ोतरी के प्रति चिंता व्यक्त किया गया। उन्होंने ने कहा कि राष्ट्र में सत्ता पर काबिज रहने के लिए राष्ट्र के नेतृत्व कर्ताओं द्वारा जातिवादी अराजकता फैलाया जाय रहा है।जिन वजहों से वरीय पदाधिकारीयों समेत जिला स्तर से प्रखंड स्तर तक के अधिकारियों द्वारा बैकवर्ड फारवर्ड या जाति देखकर फैसला दिया जाता हैं। इतना ही नहीं यदि कोई प्रशासनिक मामला भी हो तो पुलिस प्रशासन द्वारा भी बैकवर्ड फारवर्ड के तहत या अपनी जाति वालों को बेगुनाह करार करते हुए, दूसरे जाति वाले बेगुनाह व्यक्ति को गुनहगार साबित कर सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है। इस तरह की भावना आरक्षित वर्गों के भीतर कूट कूट कर भरा पड़ा है, और उनके द्वारा बढ़-चढ़कर सहभागिता निभाया जाता है। क्योंकि वो योग्यता के बल पर कोई भी पद लेने में असमर्थ हैं, और जाति नहीं देखेंगे तो उनकी औकात शुन्य के बराबर है, जो किसी पद पर आसक्त नहीं हो सकते।
आगे विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा
जातिगत आरक्षण के हिमायती राजनीति पार्टियों में सम्मिलित सवर्ण नहीं हो सकते
वही अनारक्षित वर्गों की बात किया जाए तो वो सिर्फ अपनी डफली अपनी राग अलापने में मस्त हैं, उन्हें सिर्फ अपनी फायदा दिखाई देता है, साथ ही अपने समाज व राष्ट्र के साथ भी विश्वास घात करते हैं। अन्यथा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मार्च 2018 में एस सी एस टी एक्ट व अगस्त 2024 क्रीमीलेयर में आने वालों को एससी/एसटी आरक्षण के दायरे से बाहर करने की शीर्ष अदालत के विरुद्ध अध्यादेश सर्वसम्मति से पारित नहीं होता। शीर्ष अदालत ने तो दोनों वर्गों में आरक्षण का लाभ उन लोगों तक पहुंचाने के लिए जिन्हें इसकी ज्यादा जरूरत है, उप-वर्गीकरण का भी निर्देश दिया था। अंततः सुप्रीम कोर्ट द्वारा गेंद सरकार के पाले में डाल दिया गया। क्योंकि किसी के द्वारा भी विरोध नहीं किया गया। जबकि दोनों सदनों में सवर्ण वर्ग के तथाकथित नेतृत्व कर्ता भी मौजूद थे। इसलिए उन्हें सवर्ण नहीं माना जा सकता।
क्या जिनकी संख्या अल्प है वो स्वतंत्र नही है
वोट बैंक की राजनीति में राजनीतिक पार्टियों द्वारा सवर्ण वर्ण की जनसंख्या कम होने के कारण हांसिए पर रखा गया है। क्या सवर्ण वर्ण की होने की वजह से सभी अमीर है,क्या गरीबी जाति देखकर आता है? यह सोचने का विषय है, की किसी पद के लिए परीक्षा में अधिक अंक लाने के बावजूद भी सवर्ण वर्ग की होने की वजह से अयोग्य ठहरा दिया जाता है। तो यह क्यों न माना जाए की अल्प संख्या होने की वजह से सवर्ण वर्ग स्वतंत्र नहीं हैं।
क्या हमारे राष्ट्र के लोकतंत्र के मंदिर में अपराधियों का कब्जा है?
जब संविधान के तहत लिंग,जाति, धर्म,व क्षेत्र आधारित द्वेष अपराध है, तो राष्ट्र के लोकतंत्र के मंदिर में इस तरह की कानून सर्वसम्मति से पारित कैसे हो जाता है। क्या हमारे राष्ट्र के लोकतंत्र के मंदिर में अपराधी काबिज हैं?
आरक्षण के तहत योग्यता का बलात्कार किया जा रहा है। 90% अंक लाने वाले को अयोग्य व 30% अंक लाने वाले को जाति के आधार पर योग्य घोषित करना क्या मानव की अधिकार का हनन नहीं है। पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सहित मानवाधिकार के तमाम संगठन भी मौन है, क्योंकि उन्हें पता है की सवर्ण समाज के नेतृत्व कर्ता सभी मुर्दा है।
राष्ट्र व समाज हित में आगे बढ़ो
सवर्ण समाज के साथ ही राष्ट्र कि नैया डूब रही है आप सभी सवर्ण वर्ग के लोगों से आग्रह है, कि आरक्षण समर्थित सभी राजनीतिक पार्टियों का दामन छोड़ एक हो। यदि ऐसे किसी राजनीतिक पार्टियों के साथ अपने समाज के लोग भी खड़ा हो और भ्रमित करने का कोशिश कर रहा हो तो उसका बहिष्कार करें,क्योंकि वो सवर्ण नहीं है भेड़ की छाल में छुपे हुए भेड़िया है। यदि कोई भी आरक्षण विरोध के तहत किसी सीट से चुनाव लड़ता है तो उसका समर्थन करें, नहीं तो एक साथ होकर वोट का बहिष्कार करें, अन्यथा नोटा।
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