
आणिबाणी जैसी स्थिति देश में फिर न आए, इसके लिए सतर्क रहना जरूरी --- अनिल भदे
- महेंद्र कुमार (गुडडू), ब्यूरो चीफ भिवंडी
- Aug 03, 2025
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भिवंडी। आणिबाणी का दौर लोकतंत्र पर गहरा आघात था। यह केवल एक राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि देश और समाज के मन पर लगे गहरे घाव थे, जिन्हें आज भी भुलाया नहीं जा सकता। उस दौर में नागरिक अधिकारों का दमन हुआ, सामाजिक माध्यमों पर नियंत्रण थोपे गए और विशेषकर कुछ संगठनों से जुड़े लोगों को अत्याचारों का सामना करना पड़ा।यह वक्तव्य लोकतांत्रिक सेनानी संघ, महाराष्ट्र प्रदेश के प्रवक्ता अनिल भदे ने लोकमान्य टिलक पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित परिसंवाद में दिया। यह आयोजन वाचन मंदिर संस्था द्वारा "आणिबाणी काल और उसके पचास वर्ष" विषय पर टिलक मंदिर सभागृह, भिवंडी में किया गया था।
भदे ने कहा कि यह संघर्ष केवल सत्ता के लिए नहीं, बल्कि न्याय और नागरिक हकों की रक्षा के लिए था। आज भी यह आवश्यक है कि हम सजग रहें ताकि भविष्य में फिर कभी वैसी स्थितियां उत्पन्न न हो।कार्यक्रम की अध्यक्षता वाचन मंदिर संस्था के अध्यक्ष सुधीर सिंगासने ने की। प्रारंभ में भिवंडी तालुका में अनिबाणी काल के दौरान सक्रिय रहे वाचन मंदिर कार्यकारिणी सदस्य प्रदीप पालये ने उस दौर की घटनाओं पर प्रकाश डाला और बताया कि किस प्रकार स्थानीय स्तर पर आंदोलनों का संचालन किया गया।वाचन मंदिर के सहकार्यवाह ज्ञानेश्वर गोसावी ने एक भिन्न दृष्टिकोण रखते हुए कहा कि त्या काळात म्हणजे अनिबाणी लागू करताना देशांतर्गत शांति बनाए रखना उद्देश्य था। यह निर्णय संविधान की सीमाओं के भीतर लिया गया था। उस समय प्रशासनिक कामकाज सुचारू रूप से चल रहा था और सभी कानून व्यवस्था के दायरे में था। उन्होंने कहा कि यदि जनता को वास्तव में इससे विरोध होता तो इंदिरा गांधी को बाद की लोकसभा चुनावों में भारी बहुमत न मिला होता, जिससे स्पष्ट होता है कि जनता का एक वर्ग उस निर्णय के साथ था।कार्यक्रम की शुरुआत में मिलिंद पलसुले ने प्रास्ताविक प्रस्तुत किया, जबकि कार्यक्रम के अंत में कार्यवाह किशोर नागवेकर ने आभार व्यक्त किया।कार्यक्रम को सफल बनाने में संस्था के खजिनदार उज्ज्वल कुंभार, योगेश वल्लाल, ग्रंथपाल प्रणाली खोडे, शलाका मदन, शैला परब, शीतल ताले एवं अन्य सदस्यों ने विशेष योगदान दिया।
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