
साइजिंग व लूम मालिकों की लड़ाई में पीस रहे मजदूर
- महेंद्र कुमार (गुडडू), ब्यूरो चीफ भिवंडी
- Aug 17, 2021
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◼️साइजिंग के बाद अब कॉटन लूम मालिकों की एक सप्ताह की हड़ताल शुरू
◼️साइजिंग एसोसिएशन द्वारा भाव बढ़ाने से खफा है लूम मालिक
◼️काम बंद होने से मजदूरों के समक्ष रोजी-रोटी का गंभीर समस्या
भिवंडी।। भिवंडी में साइजिंग वेल्फेयर एसोसिएशन द्वारा एक सप्ताह तक हड़ताल के बाद बढ़ते गए भाव से खफा कॉटन लूम मालिकों ने एक सप्ताह के लिए हड़ताल शुरू कर दिया है।साइजिंग व लूम मालिकों ने शुरू लड़ाई में गरीब मजदूर पीस रहे है।काम बंद होने के कारण मजदूरों पर भुखमरी की नौबत आ रही है।लेकिन इस लड़ाई में मजदूरों को देखने व संभालने वाला कोई नही है।जो मजदूरों में गुस्से का कारण बना हुआ है।
मालूम हो कि भिवंडी में करीब 100 से अधिक साइजिंग मालिकों ने कच्चे माल और बिजली दरों में वृद्धि व पावरलूम उद्योग की दर पर ही साइजिंग यूनिटों से भी बिजली बिल वसूली की मांग को लेकर एक सप्ताह तक हड़ताल की थी।जिसके बाद साइजिंग एसोसिएशन ने महंगाई का हवाला देते हुए 4-5 रुपये प्रति किलो जॉब रेट बढ़ा दिया है। साइजिंग एसोसिएशन द्वारा मनमर्जी से 4-5 किलो जॉब रेट बढ़ाए जाने से खफा होकर पावरलूम संगठनों ने मीटिंग कर उक्त निर्णय के खिलाफ 13 से 20 अगस्त यानी एक सप्ताह तक हड़ताल शुरू कर दिया है।पावरलूम संगठनों की अगुवाई में पावरलूम मालिकों की हुई महत्वपूर्ण बैठक में साइजिंग एसोसिएशन से जॉब रेट में की गई बढ़ोतरी पर पुनर्विचार करने की अपील की है।इस हड़ताल के असर कॉटन के तकरीबन तीन लाख पावरलूम पर पड़ सकता है।हालांकि शहर में बड़े पैमाने पर कॉटन लूम मालिक इस हड़ताल में।शामिल न होकर अपने कारखाने को चालू रखा है।लेकिन कॉटन क्लॉथ निर्माण में जुटी काफी पावरलूम मशीनों की खटपट बंद हो गई है। शुक्रवार से शुरू एक सप्ताह की हड़ताल के कारण पावरलूम मशीनों पर काम करने वाले करीब 50 हजार से अधिक मजदूर का रोजगार छिन गया है।पावरलूम हड़ताल से मजदूरों में अफरा-तफरी का माहौल फैला हुआ है। हड़ताल की खबर प्रकाश में आते ही अधिसंख्यक मजदूर मुलुक जाने की फिराक में जुट गए हैं।कई पावरलूम मजदूरों का कहना है कि भिवंडी पावरलूम नगरी करीब 1 साल से मंदी और बंदी के दौर से गुजर रही है। कोरोना शुरू होते हुई लॉकडाउन में किसी तरह घर गए फिर रोजी-रोटी की तलाश में भिवंडी आए, लेकिन फिर पावरलूम की हड़ताल से परिवार वालों का भरण-पोषण करना बेहद कठिन हो गया है। जीवनयापन के लिए पावरलूम नगरी आते हैं, लेकिन मंदी और हड़ताल से मायूस होकर घर लौटना पड़ता है। परिवार कैसे चलाएं समझ नहीं आ रहा है।
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