
देश के अंदर से आतंकवाद का कब होगा खात्मा
- कुमार चन्द्र भुषण तिवारी, ब्यूरो चीफ कैमूर
- May 14, 2025
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संवाददाता श्याम सुंदर पांडेय की रिपोर्ट
दुर्गावती(कैमूर)--बाहर के आतंकवाद पर सारे राजनेता तो एक मंच पर आ गए मन से या दिखावा के लिए लेकिन देश के अंदर जो आतंक वादियों के समर्थक राजनेता या पब्लिक है उस पर कब चलेगा सरकार का हंटर। सरकार के द्वारा बाहरी घुस पैठियों के लिए जो कानून बनाए गए वह शक्ति से कब लागू होगा। आज देश के अंदर घुस पैठियों की भरमार है जिसका मन जब करे झोला उठाएं और भारत में चला आए, लगता है भारत देश एक सराय और धर्मशाला बन गया है। पाकिस्तानियों से या अन्य देश से शादी करके लोग भारत में आकर शरण ले रहे है ऐसा क्यों हो रहा है क्या भारतीय राजनेताओं की सहमति है या भारतीय संविधान ऐसा कहता है या कार्रवाई करने की इच्छा शक्ति कमजोर है। आज देश रोहनिया, बांग्लादेशी पाकिस्तानीयों से भरा पड़ा है देश की सरकारें चुप क्यों है। ऐसे नागरिकों को वोट के सौदागर आधार कार्ड वोटर आईडी बनवाने में आगे रहते हैं क्या यह आतंकवाद को समर्थन नहीं है। जिसका मन जब करे तब देश विरोधी वक्तव्य देने लगता है इससे हानि होगी या लाभ इसका परिणाम उन्हें पता तो है लेकिन चुपचाप सरकार देखती रहती क्या इस पर कानूनी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए विचार अभिव्यक्ति के आजादी का मतलब यही है।देश में समान नागरिक संहिता के नहीं लागू होने से देश में असमानता का दौर चल रहा है जिससे अपने ही देश के नागरिक बटे हुए नजर आ रहे हैं क्या इससे देश की एकता और अखंडता कमजोर नहीं हो रही है।देश में नागरिकों को कानून बनाकर बांटना क्या एकता को कायम रख सकता है। जिस देश में आतंकवादियों को वकील मिलते हो आतंकवादियों के जनाजे में समर्थकों का हुजूम उमड़ता हो उनके लिए 24 घंटे न्यायालय खुले हो क्या इससे आतंकवाद को समर्थन नहीं मिलता है यह एक अहम सवाल है।देश में कुछ भी बोलकर देश का माहौल खराब करने वालों के ऊपर कारवाई नहीं होने का मतलब क्या दर्शाता है। जिस देश में घुस पैठिये वोट देते हो सरकारी नौकरी में काम करते हो और चुनाव लड़ते हो उस देश का भविष्य कैसा होगा क्या यह आतंकवाद को समर्थन नहीं है आखिरकार इन सब मुद्दों पर कारवाई करने वाला कौन होगा सरकार की जनता। क्या सब कुछ जानते होने के बाद भी कार्रवाई नहीं करना आतंकवाद को बढ़ावा देना नहीं माना जाना चाहिए। आज लगता है देश में राजनेताओं की इच्छा शक्ति मर गई है, अब वोट के लिए नेता है या देश के लिए नेता है कुछ समझ में नहीं आरहा है लगता है वैसे नेताओं का अभाव हो गया है।
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