मुंबई-नाशिक महामार्ग की बदहाली पर न्यायालय की चौखट पर पहुंचा मामला

सांसद सुरेश म्हात्रे ने उठाई आवाज। हाईकोर्ट में दाखिल की जनहित याचिका


भिवंडी। मुंबई-नाशिक राष्ट्रीय महामार्ग की जर्जर हालत, अधूरे चौड़ीकरण कार्य और भीषण ट्रैफिक जाम से त्रस्त नागरिकों की परेशानियों को लेकर अब मामला मुंबई उच्च न्यायालय तक पहुंच गया है। भिवंडी के लोकसभा सांसद सुरेश (बाल्या मामा) म्हात्रे ने इस मामले में जनहित याचिका दाखिल की है, जिस पर आगामी 1 अगस्त को सुनवाई होगी। इस याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश आलोक आराधे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने केंद्र सरकार, महाराष्ट्र राज्य सरकार, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और अन्य संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। सांसद म्हात्रे का कहना है कि मुंबई-नाशिक महामार्ग की हालत कई वर्षों से खराब बनी हुई है। सड़क पर बड़े-बड़े गड्ढे, अधूरे निर्माण कार्य और टोल वसूली के बावजूद बुनियादी सुविधाओं का अभाव लगातार यात्रियों के लिए मुसीबत बना हुआ है। उन्होंने कहा कि टोल वसूलने वाली कंपनी सड़क की हालत सुधारने के बजाय सिर्फ राजस्व वसूली में लगी है और टोल के आंकड़ों में पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है।भिवंडी बाईपास, माजिवाड़ा-कल्याण और मानकोली से होकर गुजरने वाले इस मार्ग पर प्रतिदिन लाखों वाहन चलते हैं। लेकिन खराब सड़कों और जाम के चलते यात्रियों, छात्रों, व्यापारियों और कामकाजी महिलाओं को घंटों फंसे रहना पड़ता है। दुर्घटनाओं की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। सांसद म्हात्रे ने याचिका के माध्यम से अदालत से आग्रह किया है कि इस महामार्ग की मरम्मत कर उसे अच्छी स्थिति में लाने के लिए उचित निर्देश दिए जाएं। इसके अलावा टोल वसूली में हो रहे कथित भ्रष्टाचार की विशेष जांच दल (SIT) से जांच कराए जाने की मांग भी की गई है।याचिका में यह भी कहा गया है कि पडघा-अर्जुनाली टोल नाके पर यात्रियों के लिए सार्वजनिक शौचालय, पीने के पानी और अन्य सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित कराई जाए। साथ ही इस टोल नाके पर हुई वसूली का ऑडिट कर उसकी रिपोर्ट न्यायालय में पेश करने का आदेश भी दिया जाए। सांसद ने यह भी बताया कि उन्होंने पहले मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार से इस मुद्दे को लेकर मुलाकात की थी। उस समय उपमुख्यमंत्री ने संबंधित अधिकारियों को कार्रवाई के निर्देश दिए थे, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।अब जबकि मामला न्यायालय में पहुंच चुका है, तो टोल ठेकेदारों और संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों में खलबली मच गई है। आम नागरिकों को उम्मीद है कि न्यायालय के हस्तक्षेप से उन्हें राहत मिल सकेगी।

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