भगवान शिव का धाम गुप्तेश्वर महादेव, भस्मासुर के डर से गुफा में छुप गए थे भगवान भोलेनाथ


पनियारी घाट से एक साहसिक एवं सुखद यात्रा

 रोहतास ।जिले के चेनारी थाना अंतर्गत विंध्य पर्वतमला की श्रृंखला कैमूर पहाड़ियों के मनमोहक वादियों के गोद में अवस्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है इसे गुप्तेश्वर गुफा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और यहां एक प्राकृतिक शिवलिंग है जिसे गुप्तेश्वर महादेव कहा जाता है।

एक साहसिक एवं सुखद यात्रा जिसमें पहाड़ के उतार-चढ़ाव झरने नदियां, जंगल सबकुछ मिलता है। यह यात्रा है बिहार के रोहतास जिले के चेनारी प्रखंड में गुप्ताधाम की। कैमूर पहाड़ी पर गुफा में स्थित गुप्ताधाम में बने गुप्तेश्वर महादेव मंदिर की ख्याति शैव-केंद्र केन्द्र के रूप में है। भगवान शिव त्रिदेवों में से एक है और उनके इस धाम तक पहुंचने का रास्ता काफी कठिन है। जिस तरह से लोग तमाम मुश्किलों को पार करने के बाद केदारनाथ और बद्रीनाथ दर्शन के लिए पहुंचते है, ठीक उसी तरह से भक्त भगवान शिव के इस अनोखे धाम तक पहुंचते है।

गुप्ताधाम मुख्यत: चार रास्तों से पहुंचा जा सकता है। उगहनी घाट, पनियारी घाट, पचौरा घाट एवं दुर्गावती जलाशय परियोजना पर बने चेक नाका से वन पथ के जरिए गुप्ताधाम पहुंचा जा सकता है। इन चारों रास्तों से धाम की दूरी लगभग 12-15 किलोमीटर है।


*गुफा में करते हैं निवास* 

इस मंदिर की जी गुफा में भगवान शिव विराजते हैं वह कितनी पुरानी है इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है हालांकि इसकी बनावट को देखकर यह भी अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि गुफा मानव द्वारा निर्मित है या प्राकृतिक। मान्यता के अनुसार गुप्ता धाम के मंदिर की गुफा में पवित्र शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

जिस तरह से केदारनाथ व बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान कई लोगों में ऑक्सीजन की कमी देखने को मिलती है इस तरह से इस धाम की गुफा के अंदर जाने के दौरान लोगों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है बताया जाता है कि साल 1989 में ऑक्सीजन की कमी से यहां पर करीब आधा दर्जन लोगों की मौत हो गई थी। लेकिन इसके बाद भी यहां किसी भी तरह की हादसा नहीं हुआ। उसके बाद भी भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। वर्तमान समय में गुप्ताधाम न्यास बोर्ड एवं जिला प्रशासन के द्वारा मेले में ऑक्सीजन, लाइट साफ-सफाई एवं श्रद्धालुओं के सुख सुविधा का ख्याल रखा जाता है एवं पुलिस बल की तैनाती होती है। 

पहाड़ी पर स्थित इस पवित्र गुफा के द्वारा तक पहुंचाने के बाद सीढियों से नीचे उतरना पड़ता है द्वारा के पास 18 फीट चौड़ा एवं 12 फीट ऊंचा मेहराबनुमा दरवाजा है सीधे पूर्व दिशा में चलने पर पूर्ण अंधेरा हो जाता है गुफा में लगभग 363 फीट अंदर जाने पर बहुत बड़ा गढ़ा है जिसमें सालों भर पानी रहता है इसलिए इसे पातालगंगा कहते हैं इसके आगे यह गुफा काफी सकरी हो जाती है गुफा के अंदर प्राचीन काल के दुर्लभ शैल चित्र आज भी मौजूद है इसी गुफा के बीच में एक अन्य गुफा शाखा के रूप में फूटती है जो आगे एक कक्ष का रूप धारण करती है इसी कक्ष को लोग नाच घर या घुड़दौड़ कहते हैं। रोशनी का समुचित प्रबंध नहीं होने के कारण नाच घर को नहीं देख पाते हैं यहां से पश्चिम जाने पर एक अन्य सक्रिय शाखा दाहिनी ओर जाती है इसके आगे के भाग को तुलसी चौरा कहा जाता है। 


*गुप्ता धाम गुफा* 

इस मिलन स्थल से एक और गुफा थोड़ी दूर दक्षिण होकर पश्चिम चली जाती है इसी में गुप्तेश्वर महादेव नमक शिवलिंग है गुफा में अवस्थित है या वास्तव में प्राकृतिक शिवलिंग है इस पर गुफा की छत से बराबर पानी टपकता रहता है इस पानी को श्रद्धालु प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं वहीं गुप्ता धाम से लगभग डेढ़ किलोमीटर दक्षिण में सीता कुंड है जिसका जल बराबर ठंडा रहता है यहां स्नान करना एक अद्भुत आनंद है। 


*पौराणिक कथा* 

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भोलेनाथ को खुश करने के लिए भस्मासुर तपस्या कर रहा था भस्मासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उसे वरदान मांगने के लिए कहा गया तो उसने कहा कि वह जिस किसी के सिर पर अपना हाथ रखे वह भस्म हो जाए भगवान शिव ने उसे यह वरदान दे दिया। 

तब देवी पार्वती की सुंदरता पर मोहित होकर भस्मासुर ने भगवान शिव के सिर पर हाथ रखना चाहा इसलिए भगवान शिव को भस्मासुर से बचने के लिए इस गुफा में छिपना पड़ा। यह देख भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लेकर बड़ी ही चतुराई से भस्मासुर का हाथ उसी के सिर पर रखवा कर उसे भस्म कर दिया। 


*गंगाजल चढ़ाने की परंपरा* 

ऐतिहासिक गुप्तेश्वर महादेव में शिवलिंग पर बक्सर से गंगाजल लेकर चढ़ाने की पुरानी परंपरा है खास तौर पर शिवरात्रि एवं सावन के सोमवारी के दिन झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ व नेपाल से भी लोग यहां पर जलाभिषेक करते हैं।


*कठिन है रास्ता* 

बता दें कि इस गुफा तक पहुंचाने का रास्ता काफी मुश्किलों भरा है जिला मुख्यालय सासाराम से 65 किलोमीटर की दूरी पर यह गुफा स्थित है यहां पहुंचने के लिए भक्तों को दुर्गावती नदी को पांच बार और पहाड़ी की यात्रा करनी पड़ती है। उसके बाद महादेव के दर्शन के सौभाग्य प्राप्त होते है। 


*गुफा का रहस्य* 

इस गुफा के एक रहस्य का आज तक कोई पता नहीं लग पाया है। दरअसल, गुफा में शिवलिंग के ऊपर हमेशा जो पानी टपकता रहता है, वह कहां से आता है, इसका आज तक पता नहीं चल पाया है।


*कैसे पहुंचे* 

सासाराम से लगभग 40 किलोमीटर दूर आलमपुर के रास्ते पनियारी पहुंचे। वहां से सामने पहाड़ी पर चढ़ाई करनी होती है। यहां एक देवी का स्थान है, जिसको लोग पनियारी माई के नाम से जानते हैं। शिव भक्त यहां पनियारी माई का दर्शन करके आगे की यात्रा करते हैं। चढ़ाई के रास्ते में अनेक तरह की आवाजें, जीव-जंतु, सुंदर प्रकृति छटा मन को मोहित कर लेती है। बंदरों और लंगूरों के झुंड इस यात्रा को और भी अद्भुत बनाते हैं। 

फिर रास्ते में बधवा खोह नामक जगह मिलती है। आगे एक जगह हनुमान जी और दुर्गा जी का मंदिर है जहां बहुत सी छोटी-छोटी दुकानें हैं। छोटी-छोटी तंबुनुमा जगह बनाई गई है, जिसमें श्रद्धालू आराम करते हैं। यहां से चलने के बाद रास्ते में दो बार दुर्गावती नदी को पार करना पड़ता है। फिर लगभग 3 या 4 किलोमीटर ऊपर- नीचे समतल चलने के बाद पहाड़ी का दूसरा छोर आ जाता है। यहां से तीन या चार किलोमीटर दूर चलने के बाद स्थित है बाबा गुप्तेश्वर महादेव की गुफा।

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