बुद्धजीवियों के गांव की यह दशा बच्चे खेल रहे जुआ,अभिभावक मौन

राजीव कुमार पाण्डेय


कैमूर ।। जिले के रामगढ़ प्रखंड का विख्यात डरवन गांव कभी बुद्धजीवियों के मामले मे शीर्ष पर रहा है। कभी इस गांव के बच्चे कॉपी और पेंसिल, कलम से खेला करते थे लेकिन आज इस गांव के बच्चे तास के पत्तों के साथ जुआ खेल रहे हैं।मिनी राजधानी के नाम से विख्यात इस गांव की यह दशा कैसे और क्यों बदल रही है इसके लिए ग्रामीणों को सोचना होगा।इस गांव मे बड़े लोग एक दो जगह पर टाइम पास के उद्देश्य से आज से लगभग 10 वर्ष पूर्व तास खेला करते थे। आज वे भी नही खेलते।लेकिन इस गांव के बच्चे प्रतिदिन इस तरह का कार्य कर रहे हैं।

गांव मे रहने वाले समाजसेवीयों,बुद्धजीवियों को पता नही क्या हो गया है कि गांव के भलाई के लिए मौन हो गए हैं।कैमूर जिले मे सबसे अधिक डॉक्टर देने वाला गांव की यह दशा गांव मे आपसी प्रेम, सहयोग न होने की ओर प्रेरित कर रहा है।किसी को किसी से कोई मतलब नही है इस मनोभावना को जगह दे रहा है। गांव के ही एक समाजसेवी फिरोजदीन रजक का कहना है कि

कभी इस गांव से डॉक्टर,इंजीनियर,शिक्षक,अन्य नौकरी मे जाने की होड़ मची रहती थी लेकिन आज की दशा को देखकर रोना आता है।  अब अगर कोई उच्च शिक्षा या कहे तो अच्छी नौकरी प्राप्त कर ले रहा है वह गांव से दूर बाहर रहके पढ़ाई करके ही प्राप्त कर रहा है। गांव मे कोई शिक्षा का माहौल है ही नही।

यह जो बच्चों द्वारा कार्य किया जा रहा है यह बाल अपराध है गांव के अभिभावक अगर ध्यान नही दे रहे तो ऐसे अपराध को रोकने के लिए पुलिस प्रशासन को सामने आना चाहिए। ऐसा नहीं है कि गांव मे रहने वाले सब बच्चे जुआ खेल  रहे हैं ऐसे बच्चों की संख्या दस के लगभग है।जो गांव के पूरे बच्चों का भविष्य खराब कर रहे हैं।जुआ खेल रहे बच्चों की उम्र 8 से पंद्रह वर्ष तक की है।

रिपोर्टर

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