मित्रता में कटुता को जगह न बनाने दें

कार्यकारी संपादक अरविंद मिश्रा

"मित्र शब्द" अपने आप मे बड़ा ही अनोखा है। मित्रता कर्ण के जैसे की जाती है जहाँ पर अहित भी दिखे तो भी वह छोड़ी नही जाती है। ऐसे तो मित्रता पर बड़े बड़े लेख,  लोकोक्तियाँ, सुविचार आप सभी ने पढ़े होंगे लेकिन मित्रता शब्द ही ऐसा है जो अपने आप मे सदा ताजगी से परिपूर्ण होता है। मित्र सदा एक परिजन की भांति होता है और कहीं कहीं उससे भी बढ़कर होता है जिसके सामने हम सब खुलकर अपने आप को प्रस्तुत करने में अपने आप को सक्षम पाते हैं। जीवन मे अगर 5 मित्र हैं तो आप हमेशा परिपूर्ण माने जाते हैं बशर्ते वह मित्र हों।

लेकिन जब इसी मित्रता में कटुता आती है तो वह इसे मित्रता से दूर करती है। कारण अनेकों हो सकते हैं लेकिन यदि मित्र ही है तो कटुता के लिए कोई स्थान नही होना चाहिए। हो सकता है कि कहीं पर वैचारिक मतभेद हो या कुछ गलतफहमियां पैदा की गई हों या हो गयी हों तो उसे एकत्र बैठकर जरूर सुलझाने का प्रयास करना चाहिए। ताली हमेशा एक हाथ से नही बजती यह सही है लेकिन कभी कभार एकतरफा सोच हमें गलत रास्ते पर ले जाती है तो जब कभी एकतरफा कोई ऐसा विचार मन मे आए और मित्र के प्रति द्वेष की भावना जन्म लेने की कोशिश करे तो यह पहल अवश्य करनी चाहिए कि बातों को आपस मे सुलझा लिया जाय अन्यथा कटुता का जहर अवश्य घर बना लेगा और दरार पैदा होगी। यदि सही मित्रता निभानी है तो कटुता से परहेज करें।

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