
मैं तमसा हूं,,, मेरा जीवन संकट में है,,, एक पौराणिक नदी की व्यथा
- देवराज मिश्र, ब्यूरो चीफ अयोध्या
- Sep 03, 2022
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अयोध्या ।। मैं हूं आपकी तमसा मां। वही तमसा जिसके तट पर प्रभु श्रीराम ने वनगमन के समय प्रथम रात्रि विश्राम किया था। मैंने प्रभु को मातृत्व सुख प्रदान किया था। मेरा उद्गम स्थल जिले के अंतिम पश्चिमी छोर पर स्थित मवई ब्लाक क्षेत्र के लखनीपुर गांव के समीप है। मैं कभी लोगों के लिए जीवन दायिनी सिद्ध हुआ करती थी। पशु-पक्षी मेरे शीतल जल को पीकर तृप्त होते थे। किसानों के लिए भी मेरा जल वरदान साबित था, लेकिन आज मेरा जीवन खुद संकट में है।
रामचरित मानस में भी है उल्लेख ...
बता दें कि पौराणिक तमसा नदी कभी अवध क्षेत्र की पहचान हुआ करती थी। वन जाते समय श्रीराम-लक्ष्मण व सीता ने अयोध्या के बाहर सर्वप्रथम तमसा नदी के तट पर विश्राम करके इसको धन्य बना दिया था। इसका उल्लेख गोस्वामी तुलसी दास ने रामचरित मानस में ‘प्रथम वास तमसा भयो दूसर सुरसरि तीर’ के माध्यम से किया है। परंतु समाजसेवियों, नेताओं व प्रशासनिक अधिकारियों की घोर उदासीनता के चलते यह नदी अब अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है। अब यह न तो जीवनदायिनी ही रही और न ही इसका पानी आचमन योग्य है। कभी इस नदी का पानी पीकर लोग गर्मी व अन्य मौसम में अपनी प्यास बुझा लेते थे परंतु कालांतर में नदियों के भरपूर दोहन और दुरुपयोग होने के कारण इसका पानी अब स्वच्छ नहीं रह गया है। गर्मी के मौसम में यह नदी कहीं-कहीं अक्सर सूख जाती है या फिर कहीं पर कम दूषित पानी ही रहता है। अवध क्षेत्र की प्रमुख नदियों में अपनी पहचान बनाने वाली इस नदी को मड़हा व तमसा के नाम से भी जाना जाता है। इस नदी का उदगम् स्थल मवई के ग्राम बसौढी के लखनीपुर में माना जाता है। यहां पर एक सरोवर से इसका अभ्युदय हुआ है। तमसा नदी मवई, रुदौली, अमानीगंज, सोहावल, मिल्कीपुर, मसौधा, बीकापुर और तारुन आदि विकास खंडों से होते हुए फैजाबाद से अम्बेडकरनगर व गोसाईगंज के पास तक प्रवाहित होती है।
महर्षि वाल्मीकि ने भी किया है वर्णन ...
आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण में तमसा नदी का वर्णन किया है। बताया जाता है कि महर्षि वाल्मीकि का आश्रम तमसा नदी के तट पर था। कटेहरी क्षेत्र के धार्मिक स्थल श्रवण क्षेत्र में नदी का संगम बिसुही नदी से हुआ है। मवई का लखनीपुर, बीबीपुर, बरौली, करौंदी, नरौली ग्राम के साथ रामपुरभगन व गोसाईगंज कस्बे इसी नदी के तट पर बसे हैं। तमसा नदी के घाटों से पौराणिक स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। रामपुरभगन का गौराघाट, गोसाईगंज का महादेवा व सत्संग घाट सहित ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व रखने वाली तमसा नदी आज प्रदूषण व जहरीली हो जाने के कारण अभिशप्त है। औद्योगिक इकाइयों के कचरे से पवित्र नदी का जल प्रदूषित हो गया है जो मछलियों, पशु-पक्षियों व मनुष्यों के लिए घातक साबित हो रहा है।
तमसा के उद्गम स्थल पर हर वर्ष लगता है मेला
तमसा नदी के उद्गम स्थल के किनारे लखनीपुर गांव में एक प्राचीन भव्य हनुमान मंदिर है। इसका ग्रामीणों ने 25 वर्ष पूर्व जीर्णोद्धार किया था। यहां प्रतिवर्ष एक फरवरी को विशाल मेला लगता है और शाम को भंडारा भी होता है। मान्यता है कि जो भी इस दिन इस उद्गम स्थल में स्नान कर हनुमान मंदिर पर माथा टेकता है और परिक्रमा करता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
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