आलू की फसल को पाले से बचाने के लिए किसान करें गौ मूत्र का छिड़काव

मिल्कीपुर, अयोध्या ।। किसानों को इस समय मौसम के प्रतिकूलता को दृष्टिगत रखते हुए आलू की फसल में विशेष निगरानी की आवश्यकता है। इस समय बरसात होने के कारण आद्रता काफी घट एवं बढ़ रही है मैं कड़ी धूप हो जाती है तो कभी बरसात व बदली का मौसम हो जा रहा है। ऐसी स्थिति में आलू की फसल को किसानों के लिए बचाना नितांत आवश्यक है। वातावरण में जब आद्रता 80% से ज्यादा हो जाती है और मौसम के उतार एवं चुनाव होने से आलू की फसल में अगेती एवं पिछेती झुलसा/ पाल रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है। लगातार मौसम में हो रहे बदलाव के चलते जहां किसानों की फसलों के नुकसान होने की संभावना कर रहे हैं।

 वही आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज की प्रसार निदेशक डॉक्टर ए पी राव से जब बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि मौसम में एक गर्म ठंड के वातावरण के उतार एवं चढ़ाव होने से फफूदा का प्रकोप आलू की फसल पर पड़ता है। पौधों की निचली पत्तियों पर छोटे-छोटे पत्तों पर उभरने लगते हैं रोग बढ़ने के साथ धब्बों के आकार और रंग में भी वृद्धि होती है। रोग का प्रकोप बढ़ने पर पत्तियां सिकडु कर गिरने लगती है तनो पर भी पूरे एवं काले धब्बे होने लगते हैं आलू का आकार छोटा ही रह जाता है तना डंठल पति एवं कंद पर भूरे धब्बे बनाकर अटैक करके फसल की बड़वार रोक देता है फसल जल सी जाती है। इस रोग के निदान के लिए किसान आलू की फसल में मैनको ज़ेब फफूदनाशी 0.25 प्रतिशत 2.5 ग्राम/ लीटर पानी मैं प्रथम छिड़काव करें, 10 दिन उपरांत रेडोमिल एमजेड या करजेड एम-81 या  सेक्टिन 60 डब्ल्यूपी में से किसी एक दवा का 0.25 प्रतिशत 2.5 ग्राम/ लीटर पानी से छिड़काव करें, किसान जैविक क्षेत्र पर बचाव के तौर पर देसी गाय का मूत्र 1.0 लीटर की 15-20 लीटर पानी उचित स्टीकर मिलाकर शाम के समय छिड़काव करें फसल के 50 से 60 दिन की अवस्था में प्रति एकड़ 10 से 12 किलोग्राम लकड़ी की  राख का बुरकाव कर अपनी फसल को बचा सकते हैं। इन उपचार करने के बाद अच्छी आलू की फसल से पैदावार ले सकते हैं साथ ही साथ पाला से बचा हेतु 10 से 15 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करके आलू के खेत में नमी बनाए रखना नितांत आवश्यक है।

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