युद्ध के दोहे----- डॉ एम डी सिंह

शत्रु पर न करें कभी, आप पूर्ण विश्वास।
बदले की मिटती नहीं, कभी अधूरी प्यास।।

निर्बल को निर्बल सदा,कभी न समझें आप।
मिलते मौका एक दिन ,गरदन देगा नाप।।

घायल कर ना छोड़िए, कभी कहीं भी सांप।
कूंच मस्तक दफनाइए,लखि रुह जाए कांप ।।

सारे विकल्प तलाशिए ,युद्ध को अंतिम मान।
माने दुश्मन यदि नहीं, फिर तो लीजै ठान।।

चाणक्य नीति जो कहती,पढ़ें लगाकर ध्यान।
आंखें खोल कर रखिए,खोले रखिए कान।।

आक्रामक ही जीतता, कहे युद्ध विज्ञान।
घुसकर घर में मारिए ,डरा रहे शैतान।।

होएं बज्र सी अस्थियां ,छाती हो आकाश।
मांगे जितना भी धरा, उतना रक्त हो पास।।

बैठे देश न देखकर ,जन-जन दौड़ा जाय।
बाल एक न हो बांका,वीर कसम जो खाय।।

रहें सदा तत्पर रंण को, भरे जीत का भाव। 
उफ भी न निकले मुख से, लगे देंह जो घाव।। 

कायर सदैव धरा पर, रहे देश के भार।
उसे नपुंसक जानिए, जो स्वीकारे हार।।


डॉ एम डी सिंह पीरनगर ,गाजीपुर यू पी में  पिछले पचास सालों से ग्रामीण क्षेत्रों में होमियोपैथी  की चिकत्सा कर रहे हैं 

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