2 अक्टूबर गांधी जयंती पर विशेष

21 वीं सदी में अहिंसा की उपादेयता

मानव जीवन का मूलाधार अहिंसा है और अहिंसा हर सदी में विद्यमान रहा है जो 21वीं सदी में भी विद्यमान है। आज संपूर्ण मानव समाज 21वीं सदी में जी रहा है और भारत देश में स्वतंत्रता के पश्चात विभिन्न क्षेत्रों में मानव ने उन्नति की है, जिसमें शिक्षा, खेती, तकनीकी और विज्ञान के साथ-साथ चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष उन्नति किया है जो मानव समाज ने अहिंसा धर्म का पालन करते हुए प्राप्त किया है। महात्मा गांधी अहिंसात्मक शांति के माध्यम से देश और दुनिया में व्यापक परिवर्तन के पक्षधर थे। वह मानते थे कि अहिंसा ही शांति है। इसी से विश्व का कल्याण है और जब सबका कल्याण होगा तब अपना भी कल्याण होगा। वह कहते थे कि अहिंसा से सामाजिक स्वतंत्रता मर्यादित परिमाण में लाया जा सकता है। क्योंकि इसमें परस्पर सहयोग अपनापन और प्रेम है। अहिंसा ही सर्वोपरि मानव धर्म है। इसमें सभी विकासवादी सिद्धांत निहित है। 21वीं सदी में अहिंसा की उपादेयता के संदर्भ में कथन है कि अहिंसा पर आधारित स्वराज में कोई किसी का शत्रु नहीं होगा, सारी जनता की भलाई का सामान्य उद्देश्य सिद्ध करने में हर एक अपना विशेष योगदान देगा, सब पढ़ लिख सकेंगे और सब का ज्ञान दिन प्रतिदिन बढ़ता रहेगा। बीमारी रोग कम से कम हो जाएंगे, ऐसी व्यवस्था की जाएगी कोई कंगाल नहीं होगा और मजदूरी करके आजीविका चलाने वालों को काम मिल जाएगा। ऐसी शासन व्यवस्था  में जुआ, शराबखोरी और दुराचार का या वर्ग- विदेष का कोई स्थान नहीं होगा। अमीर लोग अपने धन का उपयोग बुद्धिपूर्वक उपयोगी कार्य में करेंगे। अपनी शान- शौकत बढ़ाने में या शारीरिक सुखों की वृद्धि में उसका अपव्यय नहीं करेंगे। अहिंसक स्वराज में न्यायपूर्ण अधिकारों का किसी के द्वारा अतिक्रमण नहीं होगा और इस तरह किसी को कोई अन्याय पूर्ण अधिकार नहीं मिलेगा। अहिंसक स्वराज में किसी के न्याय पूर्ण अधिकार का किसी दूसरे के द्वारा अन्याय पूर्वक छीना जाना असंभव होगा।अंहिसा शब्द ही विश्व- मैत्री का दार्शनिक रूप है। सच्चा विश्व- मित्र कभी भी आराम से नहीं कर सकता उसके हाथों पैरों में सदी नाम की जंजीर नहीं बध सकती उसे तो बस प्रेम ही प्रेम फैलाना है जो सदियों तक फैला रहे। अहिंसा की उपादेयता यानी अपने हृदय को पूरी तरह जागरुक होने के बाद, हमें अपने समाज को, यानी स्वजनों के हृदय में सारे विश्व की स्वजनता जगानी पड़ेगी। इसमें अन्याय, शोषण और अत्याचार को दूर करने की कोशिशें अखंड रूप से चलेगी। यह कहना गलत नहीं होगा कि अंहिसा धर्म को अपनाना कठिन काम है लेकिन यही वह मार्ग है जिस पर चलकर मानव संपूर्ण  21 वीं सदी में मानवता को बचा सकता है तथा और भी सशक्त होकर मानव जाति विकसित हो सकता है। कहने को 21वीं सदी, जहां मानव हवाई जहाज का सफर कर रहा है, मोबाइल फोन का उपयोग कर रहा है, कैशलेस व्यवस्था तथा तमाम नई तकनीकी का उपयोग कर रहा है वहीं दूसरी ओर 21वीं सदी को आप अलगाव, आतंक, बढतें बीमारियों की एक बेबस सदी भी कह सकते हैं।आज आधुनिकता की चकाचौंध में सबसे पहले और कुछ पाने की होड़ में मानव समाज को अंधा बना कर रख दिया है। आज की इस सदी में भी यकीनन कोई कैसे नकार सकता है कि दलितों को अधिकार दिलाने के लिए बाबा साहेब अंबेडकर का सत्याग्रह, विनोबा का भूदान, जेपी की संपूर्ण क्रांति, महाराष्ट्र के महाद शहर का पानी सत्याग्रह, नासिक का धर्म सत्याग्रह, चिपको आंदोलन,टिहरी  विरोध में सुंदरलाल बहुगुणा का हिमालय बचाओ, मेघा का नर्मदा बचाओ, राजेंद्र सिंह का यमुना सत्याग्रह, प्रोफेसर जीडी अग्रवाल और स्वामी निगमानंद के गंगा अनशन गांधी मार्ग पर  चलकर ही चेतना और चुनौती का पर्याय बन सके।  भ्रूण हत्या को अपराध मानने जैसा कानून, पुलिस जैसे विभाग मे मानवाधिकार आयोग के अधिकार, सूचना का अधिकार, मनरेगा, खाद्य सुरक्षा,पेयजल जैसे तमाम कायदे-कानून के अधिकार अथवा आधार गांधीजी के अहिंसा मार्ग से  भिंन नहीं है। वैसे अंहिसा का प्रयोग ह्रदय परिवर्तन करने का साधन है। गांधी जी के अहिंसात्मक प्रयोग, सामाजिक शांति, आत्मिक उन्नयन, धार्मिक समन्वय और सांस्कृतिक निर्माण के साथ-साथ चरित्र निर्माण का भी  साधन है। शायद यह कहना गलत नहीं होगा कि गांधीजी इसीलिए पूरी दुनिया में तमाम लोगों के हृदय में अपना स्थान बना सके स्टीव जॉब्स, अल्बर्ट आइंस्टाइन, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेतसन मंडेला, और दलाई लामा के साथ-साथ नरेंद्र मोदी जी का नाम इस कडी में लिया जा सकता है।  जिन्होंने न केवल गांधी जी पर विश्वास ही किया बल्कि उनके सिद्धांतों पर अपनी अपनी लड़ाई लड़ी औरजीतीं भी। आज की सदी में अहिंसा को अपनाकर हम अन्याय शोषण और अत्याचार को दूर करने का प्रयास कर सकते हैं। इस सदी को विकास की ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं। हम सभी का अहिंसा के माध्यम से यही प्रयास होगा कि सदियों तक मानवता सुरक्षित रहें और यह मात्र अहिंसा को अपना कर ही संभव होगा 



       डॉ.आनंद कुमार

       (गांधीवादी चिंतक)

रिपोर्टर

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