आज के राजनेताओं को भारतरत्न स्व. गुलजारीलाल नंदा से सिख लेना चाहिये

मुंबई।। राजनित करना अच्छी बात है लेकिन राजनित मे धंधा ना बने। देश हित और समाज हित के लिये अपने ही प्रार्टी के विरुद्ध आवाज उठाने की हिम्मत रखें क्योंकि प्रार्टी से बडा देश है। देश रहेगा तो प्रार्टी भी रहेगी। आज के  राजनेताओं को दो बार प्रधानमंत्री, गृहमंत्री व रेलवे मंत्री रहे भारतरत्न स्व. गुलजारीलाल नंदा से सिख लेना चाहिये। भारतरत्न स्व. गुलजारीलाल नंदा  का जन्म आज ही के दिन हुआ था। गुलजारीलाल नंदा का जन्म 4 जुलाई 1898 में हुआ था। कहा जाता है गुलजारीलाल नंदा अपने सिद्धांतों के बहुत पक्के व्यक्ति थे। वह इतने अधिक सिद्धांतवादी थे कि अपनी ही पार्टी की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के देश में इमरजेंसी लगाने के फैसले से नाराज हो गए थे। उस दौर में वह रेलमंत्री थे। कहा जाता है आपातकाल के बाद उन्होंने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया थे और उस बीच इंदिरा, राजा कर्णसिंह समेत कई हस्तियां उन्हें मनाने आईं थी लेकिन वह नहीं माने। उसके बाद उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा।

गुलजारीलाल नंदा फिजूलखर्ची के मामले में भी सख्त थे। वह कुरुक्षेत्र में नाभाहाउस के साधारण कमरों में रुका करते थे। उनका परिवार गुजरात में ही था। कहा जाता है साल 1967 के बाद उनका अधिकांश समय कुरुक्षेत्र में गुजरा लेकिन वह कभी सरकारी गाड़ी प्राइवेट काम में प्रयोग नहीं करते थे। जब वह गृहमंत्री थे तब एक बार दिल्ली निवास से उनकी बेटी डॉ। पुष्पा यूनिवर्सिटी में फार्म भरने सरकारी गाड़ी में चली गईं, इस बारे में पता चलते ही उन्होंने गुस्सा जताया। उसके बाद आठ मील गाड़ी आने-जाने का किराया उन्होंने बेटी की तरफ से खुद भरा। आपको बता दें कि बहुमुखी प्रतिभा के धनी गुलजारीलाल नंदा मुंबई के नेशनल कॉलेज में इकोनॉमिक्स के लेक्चरर भी रहे थे। केवल यही नहीं बल्कि 1922 से 1946 तक वह अहमदाबाद की टेक्सटाइल इंडस्ट्री में लेबर एसोसिएशन के सचिव भी रहे थे। अब गुलजारीलाल नंदा इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनके कई किस्से आज भी प्रचलित हैं।

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