बदहाल है जिले की स्वास्थ्य सेवा, जरूरी है कर्मचारियों पर निगरानी

जौनपुर


सरकारी एम्बुलेंस सेवा में योग्य डॉक्टर और आकस्मिक दवाओं के अभाव में स्वास्थ्य व्यवस्था फेल है। किसी तरह एम्बुलेंस अगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक मरीज को लेकर पहुँच भी गई तो वहाँ तो और भी सोने पर सुहागा है। इमरजेंसी  डॉक्टर , इमरजेंसी दवाएँ अक्सर दोनों नदारद।  वहाँ उपस्थित कम्पाउंडर आदि डॉक्टर की तरह बात करके आपको अच्छे से समझाकर सीधा जिला चिकित्सालय रेफर करके अपने कर्तव्यों की इति श्री कर  लेते हैं।इससे सुंदर कौन सी नौकरी होगी। आगे पुनः इमरजेंसी सेवाओं से नदारद वाहन आपको जिला अस्पताल छोड़कर अपना कर्तव्य पूरा कर देते हैं। अभी तक सब काम रामभरोसे चल रहा है। जिला चिकित्सालय में 2 बजे के बाद अगर कोई स्टाफ आपका केअर करे तो स्वयं को खुशनसीब समझिये अन्यथा आपसे दुर्व्यवहार के चांस तो निन्यानबे प्रतिशत बने रहते हैं। दिल और दिमाग से सम्बंधित मरीजों को कोई इलाज जिला चिकित्सालय पर नहीं दिया जाता बल्कि उन्हें तत्काल अन्यत्र रेफर कर फुर्सत ले ली जाती है। अब इस स्थिति में मरीज की मृत्यु होने के डर से ज्यादातर मरीज जिला चिकित्सालय आकर मजबूरी में रहते हुए भी अपने मरीज को बचाने के लिये प्राइवेट अस्पतालों में भाग जाते हैं जहाँ उनसे भारी भरकम राशि वसूली जाती है जिसे उन्हें लोगो से कर्ज लेकर या अन्य तरीकों से भरना मजबूरी होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर परिवारों के स्वास्थ्य कार्ड नहीं बने हैं और जिनके बने हैं उन्हें उसके प्रयोग का तरीका नहीं पता है। 

सरकार को इस कार्ड को अधिकाधिक लोगों को प्रदान कर उसके इस्तेमाल के प्रति जागरूकता फैलानी चाहिये जिससे लोगों को कर्ज लेने से मुक्ति मिल सके। बहुत से राजनैतिक व्यक्ति भी ऐसे अवसरों का लाभ उठाने कोआँख लगाए बैठे रहते हैं। 


जिस प्रकार से एम्बुलेंस सेवा का प्रयोग करने के बाद लखनऊ से सेवा सम्बंधित मूल्यांकन हेतु फ़ोन आता है उसी प्रकार चिकित्सालय में दर्ज सभी मरीजों का आधार नम्बर और मोबाइल नंबर रजिस्टर होना चाहिये जिस पर सेवा सम्बन्धी फीड बैक मांगकर उनकी समस्या का समाधान के साथ साथ उनकी शिकायत दर्ज कर सम्बंधित कर्मचारी पर कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिये।

रिपोर्टर

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