शहीद रामचन्द्र विद्यार्थी के सम्मान में सम्मेलन के आह्वान का निहितार्थ*

आदरणीय प्रबुद्ध साथियों,


जैसा कि आप सब जानते हैं, बल्कि यही कहूँगा कि आप सब तन, मन, धन से जुड़े हुए हैं शहीद सम्मान यात्रा से, फिर भी इन कुछ बातों व तथ्यों पर वार्ता करना जरूरी हो जाता है।


साथियों, यह यात्रा 5 नवंबर को देवरिया जनपद से शुरू की गई थी। यात्रा का मकसद आप सबको ज्ञात है फिर भी मैं बताता चलूँ, देवरिया जिले में स्थिति 'शहीद रामचन्द्र संग्राहलय' में वर्तमान सरकार अतिक्रमण करके पर्यटन कार्यालय बनाने पर उतारू है। आपके स्मरण रहे कि यह वही जगह है जहाँ पर महान बालवीर रामचन्द्र विद्यार्थी ने देश तिरंगे की खातिर अपना महानतम बलिदान दिया था। फिलहाल हमारे विभिन्न नेताओं के प्रयासों व आप सबके सम्मिलित विरोध से यह अतिक्रमण फिलहाल रुका हुआ है। लेकिन सरकार की मंशा हमारे हित में ज्ञात नहीं होती क्योंकि सरकार ने इस अतिक्रमण को रोकने का कोई लिखित आश्वासन नहीं दिया है।


आप सब जानते हैं शहीद रामचन्द्र विद्यार्थी हमारे देश के महानतम स्वतंत्रता सेनानी शहीदों में से एक हैं, बल्कि एक और विशिष्ट तथ्य इनसे जुड़ा हुआ है कि ये सन् 1942 में हुए 'अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन' में सबसे कम उम्र के जांबाज शहीद थे। ऐसी महानतम विशिष्टता के उपरांत भी इन्हें साहित्यकारों व इतिहास लेखकों ने उचित स्थान अपने साहित्य व इतिहास के पन्नों में नहीं दिया। अब इन्हें 'कलम कसाई' ना कहा जाए तो और क्या कहा जाए। मात्र 13 वर्ष की अल्पायु का नन्हां जांबाज रामचन्द्र विद्यार्थी भारत माता के चरणों में अपनी महानतम शहादत देकर नन्हा सरफ़रोश हो गया, फिर भी वह साहित्य और इतिहास से नदारद है। कलम की ऐसी बेरुखी निःसन्देह सीने में कसक जगाती है।


पर ऐसा होता क्यों है इस पर भी हमें विचार करना होगा। असल में हमारी जागरूकता की कमी व अपने महापुरुषों के प्रति बेरुखी इसका सबसे बड़ा कारण है। हम दूसरों से क्या आशा करें जब हम खुद ही अपने महापुरुषों को ना जानते हैं, ना पहचानते हैं और ना उनके कार्यों को समझते हैं और ना ही उनके मान-सम्मान के लिए लड़ते हैं।


देवरिया जिले से 5 नवम्बर को शुरू की गई 'शहीद सम्मान यात्रा' उत्तरप्रदेश के लगभग तमाम जनपदों (जिलों) से गुजरती हुई अंततः देवरिया में ही 5 दिसम्बर को पूरी होगी। जैसा कि यात्रा के मुखिया पूर्व विधायक बांदा, आदरणीय बृजेश कुमार प्रजापति सभी को यात्रा के दौरान सबको निमंत्रण भी दे रहे हैं कि यात्रा के समापन पर देवरिया के 'शहीद रामचंद्र विद्यार्थी' संग्रहालय के प्रांगण में यात्रा समापन सम्मेलन व शहीद के प्रति जागरूकता सम्मेलन होगा। हम सबका यह कर्तव्य बनता है कि इस इस यात्रा को समर्थन, सहयोग तो हम दें ही दें, 5 दिसम्बर के सम्मेलन को भी पूर्णतः सफल बनाएँ। एक बात और कहना चाहता हूँ। यह किसी पार्टी विशेष के समर्थन का या किसी पार्टी विशेष के विरोध का मामला नहीं है, केवल और केवल अपने शहीद के प्रति लगाव, समर्पण व सम्मान का मामला है। हर कोई इस यज्ञ में अपनी आहुति दे सकता है। वैसे भी आंदोलन बार-बार नहीं होते। अगर हम आज चूक गए तो फिर ऐसा मौका शायद ही कभी आए। इसलिए अधिक से अधिक सहयोग प्रदान करें।


यहाँ मैं एक तथ्य और स्पष्ट कर दूँ कि प्रशासन से व सरकार से जुड़े समाज के नेताओं से बहुत वार्ता की गई थी, मगर ना ही प्रशासन ने और ना ही नेताओं ने शहीद परिवार व उनसे जुड़े लोगों को कोई उचित आश्वासन दिया। सब तरह से असंतुष्ट होकर ही संग्राहलय स्थल पर रामविलास जी आदि के द्वारा पहले धरना दिया गया, फिर बृजेश जी, दिलीप जी व देवा जी द्वारा तीन दिन की भूख हड़ताल की गई, भूख हड़ताल के समापन पर स्वामी प्रसाद मौर्य जी द्वारा प्रशासन व सरकार को अनुरोधात्मक चेतावनी दी गई, इसके बाद प्रेमचंद प्रजापति जी द्वारा भी बड़ा प्रदर्शन किया गया और प्रशासन से मुलाकात कर अतिक्रमण ना करने का अनुरोध किया व चेतावनी दी गई। पर जब प्रशासन ने कोई लिखित आश्वासन नहीं दिया तो इसके विरोध स्वरूप 'शहीद सम्मान यात्रा' निकाली गई है और समाज को जागरूक करने का निर्णय लिया गया है। और जिस तरह से प्रत्येक जनपद में इस यात्रा का स्वागत व सम्मान हो रहा है वह काबिलेगौर व काबिलेतारीफ है। वाकई समाज जाग रहा है तथा वह अपने स्वाभिमान व गौरव को पहचान रहा है ।


लगभग एक महीने की लंबी व थकाऊ यात्रा के बाद हमारे नेता बृजेश जी, दिलीप चौधरी जी व देवा रावत जी 5 दिसम्बर को अपने इस अभियान को पूर्ण करेंगे, अगर हमने सम्मेलन को अपना तन-मन-धन सहित निश्छल सहयोग किया तो इन तीनों नेताओं मेहनत सफल होगी, हमारा शहीद स्थल बचेगा व हमारे महापुरुष का सम्मान भी बढ़ेगा। यही अनुरोध है आप सभी से कि इस इस मौके को चूकें नहीं।


साथियों, अंततः पुनः सबसे नम्र निवेदन है 5 दिसम्बर को देवरिया जरूर पहुंचें और अपने सामर्थ्यानुसार आर्थिक सहयोग भी जरूर करें।


जय भारत! जय रामचन्द्र विद्यार्थी!


लेखक: डॉ. कंवल किशोर प्रजापति ('वह नन्हा सरफ़रोश- शहीद रामचन्द्र विद्यार्थी' उपन्यास के लेखक)

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