
सुरक्षित मातृत्व के लिए गर्भावस्था के दौरान गर्भवतियों के लिए प्रसव पूर्व जांच अनिवार्य
- रामजी गुप्ता, सहायक संपादक बिहार
- Feb 12, 2024
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- प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत प्रत्येक माह की नौवीं तिथि को होती है जांच
- उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था के मामलों की होती है पहचान
- गर्भवती महिलाओं को सलाह के साथ प्रोटिनयुक्त आहार व जरूरी दवाओं की दी जाती है जानकारी
बक्सर ।। सुरक्षित प्रसव को लेकर स्वास्थ्य विभाग अपनी ओर से पूरी तरह से सुदृढ़ है। जहां एक ओर आंगनबाड़ी केंद्र के माध्यम से गर्भवती महिलाओं की पोषण की कमी दूर की जाती है, वहीं सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों द्वारा उनके लिए जांच और दवाएं उपलब्ध कराई जाती है। इसी क्रम में प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत प्रत्येक माह की नौवीं तिथि को गर्भवतियों के लिए सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों (शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर) पर जांच शिविर का आयोजन किया जाता है। जहां पर प्रसव पूर्व जांच के माध्यम से गर्भवती महिलाओं में गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताओं को पता लगा कर उनका हल निकाला जाता है। साथ ही, गर्भवती महिला एवं बच्चे दोनों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करता है। प्रसव पूर्व जांच में गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला का क्रमबद्ध निरीक्षण किया जाता है। इस दौरान गर्भवती महिला की विभिन्न जांचें जैसे - रक्तचाप, खून की जांच, पेट की जांच इत्यादि की जाती है।
गर्भवतियों के शरीर में ऑक्सीज़न का प्रवाह होता है बाधित :
सदर बीसीएम प्रिंस कुमार सिंह ने बताया, खून की कमी होने से शिशु के स्वास्थ्य पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ता और गर्भवतियों के शरीर में ऑक्सीज़न का प्रवाह बाधित होता है। साथ ही, गर्भवती महिलाओं में एनीमिया, प्रसव के दौरान या इसके बाद कई जटिलताओं व जोखिम को जन्म देता है। जैसे समय से पूर्व प्रसव का दर्द, प्रसवोत्तर अत्याधिक रक्त स्राव, स्तनपान कराने में अक्षमता, जन्म के समय शिशु का वजन कम होना, कमजोर शिशु, मृत शिशु का जन्म व विकलांगता तथा नवजात की मृत्यु जैसे खतरे बढ़ जाते हैं। जिसे प्रसव पूर्व जांच के माध्यम से रोका जा सकता है। उन्होंने बताया, गर्भावस्था के दौरान गर्भवतियों को अनिवार्य रूप से चार बार जांच करानी चाहिए। पहली जांच 12 सप्ताह के भीतर अथवा गर्भावस्था का पता चलने के साथ ही करानी चाहिए। वहीं दूसरी जांच 14 से 26 सप्ताह के भीतर, तीसरी जांच 28 से 34 सप्ताह के भीतर तथा चौथी जांच 36 सप्ताह से प्रसव काल तक करा लेनी चाहिए।
एएनसी नहीं कराना एनीमिया का प्रमुख कारण :
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों के अनुसार गर्भावस्था में 4 प्रसव पूर्व जांच नहीं कराना एनीमिया का प्रमुख कारण है। आंकड़ों के अनुसार जिले में कुल 27.4 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं ही 4 प्रसव पूर्व जांच कराती हैं। वहीं, 61.5 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं सिर्फ एक बार प्रसव पूर्व जांच कराती हैं। जिसके कारण जिले में 15 से 49 वर्ष के मध्य आयु की 68.3 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं।
प्रोटिनयुक्त आहार का जरूर सेवन करना चाहिए :
सदर प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. मिथिलेश कुमार सिंह ने बताया, गर्भवती महिलाओं को प्रोटिनयुक्त आहार का जरूर सेवन करना चाहिए। दूध, अंडा, मछली, मांस के साथ हरी सब्जियों का भरपूर सेवन करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को एक साथ दो जान की परवाह करनी पड़ती है। पौष्टिक और प्रोटिनयुक्त आहार लेने से दोनों का ध्यान रखा जाता है। जो गर्भवती महिलाएं मांसाहार का सेवन नहीं करती हैं, उन्हें दूध, हरी सब्जियों और फल के सेवन पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। उन्होंने बताया कि प्रसव का समय नजदीक आए तो कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। जैसे कि सबसे पहले एम्बुलेंस या फिर किसी गाड़ी वाले का नंबर को पास में रखें। अगर दर्द शुरू हो तो तुरंत गाड़ी वाले को फोनकर बुलाएं। इसके अलावा दो-तीन ऐसे लोगों को तैयार रखें, जो कि जरूरत पड़ने पर रक्तदान कर सकें।
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