
माँ दुर्गा का पूजा आराधना सच्ची श्रद्धा से करने पर होती है मनोवांछित फल की प्राप्ति -- डॉ अमरनाथ उपाध्याय
- रामजी गुप्ता, सहायक संपादक बिहार
- Oct 21, 2023
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कैमूर।। जिले के निवासी व श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी पुजारी डॉ अमरनाथ उपाध्याय ने बताया की हिन्दु धर्म में नवरात्रि का बहुत महत्व है। नवरात्रि में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यता यह है कि जो व्यक्ति मां दुर्गा की पूजा आराधना सच्ची श्रद्धा और निष्ठा से करता है उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है! माता भगवती सभी की माता हैं!
नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करने की परंपरा त्रेता काल से शुरू हुई है। जब मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्रीराम ने लंका विजय के लिए शारदीय नवरात्रि में मां की पूजा आराधना की। इसके बाद विजयदशमी के दिन उन्हें विजय प्राप्त हुई। उस समय से नवरात्रि मनाने का विधान है। इस दौरान व्रत रखने वाले लोगों को कई चीज़ों का विशेष ख्याल रखना चाहिए। इन नियमों का पालन करने के बाद ही पूजा आराधना पूर्ण रूप से सफल होती है।
माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा यानी नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है।
नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है। नाम से ही स्पष्ट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चन्द्र और कुन्द के फूल से दी गई है।
अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र श्वेत हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा गया है। इनकि चार भुजाएँ हैं और वाहन वृषभ है, इसीलिए इनको वृषारूढ़ा भी कहा गया है।
इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बाएँ हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वरद मुद्रा है।
इनकी पूरी मुद्रा बहुत शान्त है।
ऐसा शास्त्रीय निर्देश है कि जैसे कुंवारी कन्याओं के लिए मनोवांछित वर प्राप्त करने के लिए कात्यायनी देवी का पूजन होता है, ठीक उसी प्रकार से मनोवांछित वरप्राप्ति के लिए महागौरी का भी पूजन करना चाहिए क्योंकि भगवती पार्वती ने भगवान शंकर को वर के रूप में प्राप्त करने के लिए महागौरी का पूजन और व्रत किया था।
ऐसी मान्यता है कि पति रूप में शिव जी
को प्राप्त करने के लिए महागौरी ने कठोर तपस्या की थी। इसी कारण से इनका शरीर काला पड़ गया परन्तु तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर कान्तिमय बना दिया। उनका रूप गौर वर्ण का हो गया। इसीलिए यह महागौरी कहलाईं।
सर्वसंकटहंत्री त्वं हि धनैश्वर्यप्रदायनीम् |
ज्ञानदा चतुर्वेदस्य महागौरी प्रणमाम्यहम् ||
सुखशांतिदात्री च धनधान्यप्रदायिनीम् |
द्रमुवाद्यप्रिया आद्या महागौरी प्रणमाम्यहम् ||
त्रैलोक्यमंगलं त्वं हि तापत्रयहारिणीम् |
वेद्यं चैतन्यमयि महागौरी प्रणमाम्यहम् ||
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