सृष्टि के जन्म के दात्रि के रूप की जाती है कुष्मांडा देवी की पूजा--- शिवाजी पांडेय उर्फ बाबा जी



कैमूर ।। प्रथम शैलपुत्री के साथ शुरू होता है नवरात्रि व्रत और देवी पूजा जो आम हिंदुओं में एक आस्था का पर्व और शक्ति के रूप में मनाया जाता है ।इस परंपरा में देवी के नवदुर्गा यानी नौ रूप का पूजा उनके अलग-अलग भोग और सामग्री के साथ करने का विधान है ।आज नवरात्रि का चौथा दिन है आज की पूजा माता कुष्मांडा देवी के रूप में लोग मानते हैं। वही  शिवजी पाण्डेय उर्फ बाबा जी बताते हैं कि कुष्मांडा देवी की पूजा नव दिन व्रत रहने वाले क्यों मनाते हैं इसकी जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि सृष्टि के आरंभ काल में जब कहीं कुछ नहीं था और चारों तरफ अंधकार था तब उस समय कुष्मांडा देवी ने सृष्टि के निर्माण में अपना हम योगदान दिया तथा अपने अंड मय कोश से सृष्टि का निर्माण किया था तभी से कुष्मांडा देवी की पूजा और उनके स्वरूप चर्चा लोगों के बीच में शास्त्र गत विधि से की जाती है।  उनकी आराधना भी दुर्गा सप्तशती के अंदर देवी कवच में एक श्लोक रूप में आया है। जिसमें तृतीयम चंद्र घंटेती कुष्मांडेती चतुर्थकम के रूप में चर्चा की गई है। पंडित शिवाजी पांडे इन दिनों नव दिनो तक लगातार व्रत रहकर देवी पाठ करते आरहे है। उन्होंने बताया कि दुर्गा सप्तशती के अंदर जितने भी देबियो के स्वरूप की पूजा की जाती है समय काल से सारी शक्तियां अपना स्वरूप बदलकर आती रही है और धरा धाम पर व्याप्त आसुरी शक्ति और अन्याय के विरुद्ध वैसे प्रवृत्ति के लोगो की शक्तियों द्वारा संघार कर धर्म की स्थापना करती रही शक्तियां जो धर्म की स्थापना के लिए धरा धाम पर आती है। और जब-जब धर्म की हानी होगी तब तब  शक्तियों का प्रकटय किसी न किसी रूप में होगा।

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