
महिलाओं, किशोरियों व शिशुओं के पोषण स्तर को बढ़ाने के साथ-साथ एनीमिया के स्तर में गिरावट लाना जरूरी : डीपीओ
- रामजी गुप्ता, सहायक संपादक बिहार
- Apr 01, 2022
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- आईसीडीएस की डीपीओ ने इटाढ़ी परियोजना अंतर्गत आंगनबाड़ी केंद्रों का किया निरीक्षण
- पोषण वाटिका के साथ केंद्र पर होने वाली विभिन्न गतिविधियों का किया अनुश्रवण
बक्सर ।। राष्ट्रीय पोषण मिशन के तहत जिले में चार अप्रैल तक आंगनबाड़ी केंद्रों पर पोषण के प्रति जागरूकता के लिये गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है। इस क्रम में गतिविधियों का संचालन पार्दशिता के साथ हो इसके लिये आईसीडीएस की डीपीओ तरणि कुमारी ने बीते दिन इटाढ़ी परियोजना अंतर्गत केंद्र संख्या 106 का निरीक्षण किया। जहां उन्होंने पोषण पखवाड़ा के दौरान अब तक हुई गतिविधियों की जानकारी लेने के साथ पोषण वाटिका व केंद्र पर होने वाली सभी गतिविधियों का अनुश्रवण किया। जिसके बाद उन्होंने सेविका व लाभुकों को बताया कि महिलाओं, किशोरियों व शिशुओं के पोषण स्तर को बढ़ाने के साथ-साथ एनीमिया के स्तर में गिरावट लाना जरूरी है। मौके पर राष्ट्रीय पोषण मिशन के जिला समन्वयक महेंद्र कुमार के अलावा आंगनबाड़ी केंद्र की महिला लाभुकगण मौजूद रहीं।
खानपान के साथ फॉलिक एसिड की गोलियां आवश्यक :
डीपीओ तरणि कुमारी ने बताया, एनीमिया एक गंभीर समस्या है जो गर्भवती महिलाओं के लिए सबसे अधिक खतरनाक है। यह गर्भवती महिलाओं के उच्च जोखिम वाले प्रसव वाली स्थिति बनाती है। पोषण की कमी के कारण होना वाला एनीमिया गर्भवती महिलाओं के साथ उसके शिशु के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। एनीमिया मातृ मृत्यु का एक सबसे प्रमुख कारण है। गर्भ में भ्रूण के सही विकास के लिए अतिरिक्त आयरन की जरूरत होती है। इसलिए उच्च आयरन वाले पोषण तत्वों जैसे पालक साग, दाल आदि के साथ आवश्यक आयरन फॉलिक एसिड की गोलियां लेना आवश्यक है। एनीमिया के लक्षणों की पहचान नियमित प्रसव पूर्व जांच से होती है। साथ ही, लाभुक महिलाओं को यह भी बताया कि किस प्रकार के भोजन का सेवन से गर्भवती व धातृ महिलाओं में एनीमिया की कमी को दूर किया जा सकता है।
गर्भवती के लिए सही खानपान जरूरी:
जिला समन्वयक महेंद्र कुमार ने बताया, सही आहार नहीं लेने वाली गर्भवती महिलाओं में आयोडीन की कमी हो सकती है। पर्याप्त आहार नहीं लेने से आयोडीन की कमी का प्रभाव भ्रूण के विकास पर पड़ता है। आयोडीन के प्राकृतिक स्रोत अनाज, विभिन्न प्रकार की दाल, ताजा खाद्य पदार्थ एवं पत्तेदार सब्जियां हैं। खाने में नियमित मछली, मांस, दूध व दही शामिल करें। भुने हुए आलू व मुनक्का का इस्तेमाल करें। भोजन पकाने में आयोडाइज्ड नमक का ही इस्तेमाल करें। शरीर में नमक अच्छी तरह अवशोषित हो इसके लिए विटामिन डी व कैल्शियम वाले खाद्य पदार्थ जरूर लें।
कुपोषित गर्भवती महिलाओं की संतान भी कुपोषित होती है :
जिला समन्वयक महेंद्र कुमार ने बताया, बच्चों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए गर्भवती महिला का खानपान महत्वपूर्ण है। कुपोषित गर्भवती महिलाओं की संतान भी कुपोषित होती है। कुपोषण के कारण मातृ व शिशु मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है। कुपोषण के कारण बच्चों का शारीरिक विकास प्रभावित होता है। कुपोषण के कारण संक्रमण का जोखिम भी बढ़ जाता है। गर्भवती महिलाओं अथवा भविष्य में मां बनने वाली महिलाओं व किशोरियों व धात्री महिलाओं के लिए ऐसे समय में विशेष तौर पर पौष्टिक खानपान पर ध्यान देने की जरूरत है। धात्री महिलाओं के लिए शिशु के नियमित स्तनपान और अनुपूरक आहार दिया जाना महत्वपूर्ण है। इन सबके के साथ स्वच्छता के नियमों का पालन भी करना है।
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