
शौर्य के 163 वर्ष: कोरोना की काली छाया पड़ने से कुंवर सिंह
- रामजी गुप्ता, सहायक संपादक बिहार
- Apr 22, 2021
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तीसरा बार नहीं मन पाएगा कुंवर सिंह का विजयोत्सव यादगार
2018 में भव्य समारोह में शामिल हुए थे सीएम नीतीश
नगर पंचायत ने कराया किला परिसर व संग्रहालय का साफ-सफाई
जगदीशपुर से अख्तर अंसारी नासिर की रिपोर्ट
जगदीशपुर ।। शाहाबाद के ऐतिहासिक बाबू वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव पर आज वीर कुंवर सिंह की जन्म स्थली जगदीशपुर में कोरोना की काली छाया पड़ने से विजयोत्सव का यादगार जश्न नहीं मनेगा। यह तीसरा मौका होगा, जब सन 1857 की क्रांति के महानायक बाबू कुंवर सिंह की ऐतिहासिक विजयोत्सव को खामोशी के साथ जगदीशपुरवासी याद करेंगे। 2019 में लोकसभा चुनाव की वजह व 2020-21 में कोरोना संकट के कारण कुंवर सिंह की शौर्य व पराक्रम की गाथा को यादगार के तौर पर याद नहीं किए जाएंगे। हालांकि, कल नप सफाई कर्मियों द्वारा किला परिसर की झाड़ू से साफ सफाई ही नहीं की गई, बल्कि कूड़ा-कचरे को भी हटा कर साफ सफाई की गयी। नप प्रभारी मुख्य मुख्य पार्षद संतोष कुमार यादव व नगर अभियंता रौशन कुमार पांडे के देखरेख में सफाई का कार्य चलता रहा। आज विजयोत्सव पर ना कोई विशेष कार्यक्रम व ना ही प्रभात फेरी निकलेगी। गौरतलब हो कि विजयोत्सव पर जगदीशपुर में कार्यक्रमों की धूम मची रहती है। लेकिन, तीन वर्ष से चुनाव व कोरोना के कहर की वजह से विजयोत्सव का जश्न फीका पड़ जा रहा है। वर्ष 2018 में शौर्य के 160 वर्ष पूरा होने पर तीन दिवसीय भव्य विजयोत्सव मनाया गया था। इसमें सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी सहित कई मंत्री भी शामिल हुए थे।
प्रथम विजयोत्सव समारोह में भाग लिए थे देश के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ.राजेन्द्र प्रसाद
जगदीशपुर ।। बाबू कुंवर सिंह बहुआयामी व्यक्तित्व व आध्यात्मिक विचारों के पुरुष थे। मानवीय मूल्यों के प्रति सजग बाबू वीर कुंवर सिंह का हृदय पूर्णत: धर्म निरपेक्षता की भावना से भरा हुआ। हिंदुओं व मुसलमानों के प्रति उनकी दो दृष्टि कभी नहीं रही। उन्होंने अपने जीवन काल में मंदिरों के साथ-साथ मस्जिदों का भी निर्माण किया था। आज भी जगदीशपुर के हिंदू-मुस्लिम मिलकर मुहर्रम के मौके पर ताजिया निकलते हैं। किला परिसर में स्थित पवित्र मजार शहीद बाबा के नाम से जाना जाता है। इस पवित्र मजार पर हर समुदाय के लोग खूब पूजा-अर्चना करते हैं जिसकी परंपरा अभी भी कायम है।
याद में मनाया जाता है 23 अप्रैल को विजयोत्सव
जगदीशपुर: कुंवर सिंह गंगा नदी की तरफ बढ़े। वे जगदीशपुर लौटना चाहते थे। एक अन्य सेनापति डगलस के अधीन सेना कुंवर से लड़ने के लिए आगे बढ़ी। नघई नामक गांव के निकट डगलस और कुंवर सिंह की सेनाओं में संग्राम हुआ। अंततः डगलस हार गया। कुंवर सेना के अपनी साथ गंगा की ओर बढ़े। कुंवर सिंह गंगा पार करने लगे। बीच गंगा में थे। अंग्रेजी सेना ने उनका पीछा किया। एक अंग्रेजी सैनिक ने गोली चलाई। गोली कुंवर सिंह के दाहिनी कलाई में लगी। विष फैल जाने के डर से कुंवर सिंह ने बाएं हाथ से तलवार खींचकर अपने दाहिने हाथ को कुहनी पर से काटकर गंगा में फेंक दिया। 22 अप्रैल को कुंवर सिंह ने वापस जगदीशपुर में प्रवेश किया। आरा की अंग्रेजी सेना 23 अप्रैल को लीग्रैंड के अधीन जगदीशपुर पर हमला किया। इस युद्ध में भी कुंवर सिंह विजयी रहे। पर घायल कुंवर सिंह की 26 अप्रैल, 1858 को मृत्यु हो गयी। 23 अप्रैल को कुंवर की याद में विजयोत्सव मनाया जाता है
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