संदर्भ

-----डॉ एम डी सिंह

जब सारे संदर्भ नए हों 
यक्ष गीत गंधर्व नए हों
यथार्थ व आशंकाओं के
गढ़े गए संवर्ग नए हों
क्षमा करें हमें युधिष्ठिर
यहां आपके लिए रिक्त 
कहीं सुगढ़ जगह नहीं है

छद्म धरे लुप्त संबंधों को
कटु कठिन छल अनुबंधों को
भर जीवन साथ चले जो
अंतहीन से प्रतिबंधों को
कर्ण तुझे अभी सहना है
कहीं तेरे लिए स्वर्ग में
मुक्त सहज सतह नहीं है

वही बाड़ प्रतिरोधों की
वही खटास संबोधों की
लट खोले अभी द्रौपदी 
वही आग प्रतिशोधों की
रहा सोच जाने की तू
रुक दुर्योधन अभी यहीं
अंत हुआ कलह नहीं है

षडयंत्रों की जीत हार
शकुनी कृष्ण नित के यार
अंगूठा लें एकलव्य का
करते पार्ध द्रोण विचार
निर्विकल्प इस युग में अब भी
करें संकल्प आप पितामह
अब कोई वजह नहीं है

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