
जन आस्था का केन्द्र है बाबा गृहनाग देव का मन्दिर
- देवराज मिश्र, ब्यूरो चीफ अयोध्या
- Jul 17, 2021
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सर्पभय से मुक्ति के लिए पौराणिक धार्मिक स्थल माना जाता है गृहनाग देव स्थान
अमानीगंज, अयोध्या ।। विकासखंड अमानीगंज के रायपट्टी ग्रामसभा स्थित गहनागन मंदिर जनआस्था का केंद्र हैं। गहनाग व रायपट्टी के में हर सोमवार और शुक्रवार को मेला लगता है जिसमें दूर-दराज से ग्रामीण व अन्य जिले के श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। यहां प्रसाद के रूप में महिलाएं पूड़ी व हलवा चढ़ाती हैं। क्षेत्रीय लोगों का विश्वास है कि सांप काटने पर नियत समय में मंदिर प्रांगण में पहुंच कर चबूतरे के चारों ओर सात परिक्रमा करने से सांप का विष कम हो जाता है। किसी भी स्थान पर सांप निकल रहे हों तो पीड़ित व्यक्ति एक मुट्ठी सरसों मंदिर में चढ़ा कर शेष सरसों वापस ले जाकर सांप निकलने वाले स्थान पर फेंक देने पर सांप निकलना बंद हो जाते हैं। मिल्कीपुर में रायपट्टी में प्राचीन गहनागन मंदिर है जिसको पुराने गहनागन मंदिर के नाम से जाना जाता है। रायपट्टी के अलावा पाराब्रम्हानान में मंदिर की स्थापना हुई। जनअवधारणा है कि पहले इस स्थान पर पडी थी और उसके बगल नीम का पेड़ व सरपत का झुरमुट था, जिसके पास विषैले सर्प रहते थे। आज भी पडी के नीचे खुदाई करने पर काफी संख्या में सांप निकल आते हैं जिससे पडीस्थल को सुरक्षित रखा गया है।मंदिर पर चढ़ावे में श्रद्धालु गेहूं और सरसों व नगदी चढ़ाते हैं, जिससे मंदिर और धर्मशाला का निर्माण कराया है।
जिला मुख्यालय से 42 किमी दूर मिल्कीपुर तहसील के गांव गहनाग स्थित गहनागदेव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। सावन महीने के सोमवार को यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। नागपंचमी के अवसर पर यहां मेला लगता है। जिसमें पडोस के कई जिलों के श्रद्धालु नागदेवता को दूध और धान का लावा चढ़ाते हैं तथा नागों से अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं। खास बात यह है कि मंदिर के पुजारी राम बिहारी तिवारी बताते हैं कि गहनाग बाबा की कृपा से कई लोग ठीक होते है।श्रीमदभागवत के श्लोक का उद्धरण देते हुए कहते हैं कि'सर्पाय सर्पभद्रं ते गच्छ दूरमहाविष:। जन्मेजयस्य यज्ञान्ते आस्तीक वचने स्मर।उनके अनुसार गह का अर्थ पकड़ना और नाग का अर्थ सांप से है। गहनाग का अर्थ सांपों के जहर को पकड़ना है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जरात्कारु मुनि का विवाह वासुकी नाग की बहन के साथ हुआ था। कालांतर में उनको आस्तीक नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। उनको ही गहनाग के नाम से जाना जाता है।जन्मेजय के नागयज्ञ में हुए समझौते के अनुसार वासुकी और गहनाग के नाम से बने मंत्रोच्चार से सांप का जहर ठीक हो जायेगा अन्यथा काटे हुए सांप के फन के हजार टुकडे़ हो जाएंगे।
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