निकलो निकलो चलो भींग लें-------डॉ एम डी सिंह

समय बरसते बादल जैसा कहीं निकल ना जाए
निकलो निकलो चलो भींग लें 

हृदय सुलगते प्रश्नों का है अंबार लगाए
मन इच्छाओं का बैठा है बाजार लगाए
समय मुट्ठी से रेत जैसा कहीं फिसल ना जाए
निकलो निकलो चलो भींग लें 

सुखद सुकोमल आंचल में कुछ पैबंद सिले हैं
अकथ सुरम्य वादियों में कुछ अपवाद मिले हैं
समय हिमखंडों के पहाड़ सा कहीं पिघल ना जाए
निकलो निकलो चलो भींग लें 

सपनों ने बसेरा ढूंढा, है रात अंधेरी
करवटें नींद से कर रही हैं हेरा-फेरी
समय हठात मिले अवसर सा कहीं बिचल ना जाए
निकलो निकलो चलो भींग लें 

दुख की समस्त पीड़ाओं का निस्तार करें हम
सुख की अनहद दिर्घाओं का विस्तार करें हम
समय हमको भी इतिहास सा कहीं निगल ना जाए
निकलो निकलो चलो भींग लें 

रिपोर्टर

संबंधित पोस्ट