खर्राटों की भाषा- डॉ एम डी सिंह

तुम सपनों में हिंदी बोते हो 
मैं हिंदी में सपने
जगे उनींदे लोगों को 
समझा-फुसलाकर
जगाना मत बतलाकर

सुबह खबर चटपटी 
अखबार चटोरों को 
कानाफूसों को बात अटपटी 
हिंदी के घर सेंध 
लेकर सब कुछ चोर लापता

लोग अचंभित स्तब्ध 
धर-पकड़ लाए गयों को देख 
ठोंक-बजा जांच-परख
अरे ! 
खर्राटे भाषा नहीं जानते ?

चलो नगाड़े पीटो गली-गली
मैं लगाता हूं हांक शहर-शहर
जाकर बतलाते हैं जग को
खर्राटों की भाषा
हिंदी हो !

रिपोर्टर

संबंधित पोस्ट