श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन श्री कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह की कथा सुन भाव विभोर हुए भक्त

कैमूर-- जिला के भभुआं प्रखण्ड अंतर्गत कोहारी गांव में चल रहे संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन पण्डित बालकृष्ण शास्त्री जी ने श्री कृष्ण और रुक्मिणी की विवाह का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह की कहानी अनूठी है। रुक्मिणी बिना देखे ही श्रीकृष्ण को चाहने लगी थीं। जब उनका विवाह शिशुपाल से तय हुआ तो कृष्ण रुक्मिणी का हरण करके द्वारिका ले आए। वहीं उन्होंने आगे बताया कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण और राधा की कहानियां तो हम अकसर सुनते आए है। मगर राधा और श्री कृष्ण का विवाह कभी नहीं हुआ है। श्री कृष्ण का विवाह रुक्मिणी से हुआ था। वहीं उन्होंने भक्तों को बताया कि रुक्मिणी ने श्री कृष्ण को कभी नहीं देखा था, फिर वह उन्हें बहुत चाहती थी। जब रुकमणि का रिश्ता चेदिराजा शिशुपाल से तय हुआ तो, श्री कृष्ण ने उनका हरण कर के उनसे विवाह कर लिया था। 

कौन थी रुक्मिणी 

शास्त्री जी ने कथा में बताया कि रुक्मिणी विदर्भ देश की राजा भीष्मक की पुत्री थी वह दिखने में बहुत ही सुन्दर बुद्धिमान, और स्वभाव की सरल कन्या थी। राजा भीष्मक के दरबार में जो कोई आता वह भगवान श्री कृष्ण के साहस और बुद्धिमता की तारीफ करता। रुक्मिणी बचपन से कई लोगों की मुख से श्री कृष्ण की तारीफ सुनती आ रही थी। इस कारण वह उन्हें चाहने लगी। 

शिशुपाल से तय हुआ रुक्मिणी का विवाह 

वहीं शास्त्री जी ने कथा में आगे बताया कि राजा भीष्मक ने अपने पुत्र रुक्म के कहने पर रुक्मिणी का विवाह चेदिराजा शिशुपाल से तय कर लिया था। रुक्म शिशुपाल का खास मित्र था, इसलिए वह अपने बहन का विवाह उससे करना चाह रहा था। दूसरी ओर रुक्मिणी भले ही श्री कृष्ण से कभी नहीं मिली थी लेकिन वह उन्हें दिल से चाहती थी। इस लिए उन्हें यह रिश्ता पसंद नहीं आया। रुक्मिणी और शिशुपाल की विवाह की तारीख तय हो गई। रुक्मिणी के माथे पर चिंता की लकीरें खींच गई। 

रुक्मिणी ने श्री कृष्ण को भिजवाया संदेश 

शास्त्री जी ने आगे बताया कि रुक्मिणी ने ठान लिया कि वही विवाह सिर्फ श्री कृष्ण से करेंगी। नहीं तो वह अपनी प्राण त्याग कर देंगी। उन्होंने अपनी एक सखि के माध्यम से श्री कृष्ण को संदेश भिजवाया। रुक्मिणी ने संदेश में कहलवाया की वह उनसे प्रेम करती है। और उसका विवाह शिशुपाल से तय हो गया है अगर उसकी शादी कृष्ण से नहीं होगी तो वह प्राण त्याग कर देगी। जैसे ही श्री कृष्ण के पास संदेश पहुंचा। वह चकित रह गए। द्वारकाधीश ने भी रुक्मिणी की सुंदरता और बुद्धिमता के बारे में सुन रखा था। 

श्री कृष्ण ने किया रुक्मिणी का हरण

शास्त्री जी ने कथा में आगे बताया कि संदेश मिलते ही श्री कृष्ण विदर्भ पहुंच गए। जब शिशुपाल विवाह के लिए द्वार पर आया तभी श्री कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर लिया जब रुक्मिणी के भाई रुक्म को पता चला तो वह अपनी सैनिकों के साथ श्री कृष्ण के पीछे गए। फिर श्री कृष्ण और रुक्म के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसमे द्वारकाधीश विजयी हुए। इसके बाद श्री कृष्ण रुक्मिणी को लेकर द्वारिका आ गए और दोनों ने विवाह कर लिया। वहीं यजमान के रूप में शिव शंकर मिश्रा, रमावती देवी, अमरेन्द्र मिश्रा, सतेन्द्र मिश्रा, अरविन्द मिश्रा, दीपक मिश्रा, अशोक पाण्डेय, बलिराम पाण्डेय, राम सनेही उपाध्याय, देवी दयाल उपाध्याय, राजेन्द्र उपाध्याय, अवधेश उपाध्याय, विनोद उपाध्याय, जय प्रकाश उपाध्याय, राजेश उपाध्याय, राजेन्द्र उपाध्याय, हरिओम उपाध्याय, अविनाश उपाध्याय, चन्दन उपाध्याय, हरि शंकर उपाध्याय, देवानंद उपाध्याय, नागेन्द्र उपाध्याय, सच्चिदानंद उपाध्याय, दिनेश उपाध्याय, संतोष तिवारी उमाकांत उपाध्याय, बेचन सिंह, जितेन्द्र सिंह, सहित हजारों की संख्या में भक्तगण शामिल हुए।

रिपोर्टर

संबंधित पोस्ट