गीता जीवन को संगीतमय बनाने के लिए गायन ग्रन्थ है

गीता जीवन को संगीतमय बनाने के लिए गायन ग्रन्थ है

------

मिर्जापुर । गीता पढ़ने से ज्यादा गायन का ग्रन्थ है । इसके अध्ययन से जहां मन-मस्तिष्क के विकार दूर होकर अनुपम आनन्द की वर्षा होती है, वही शरीर के स्तर पर नस और धमनियों में भी संगीत की गूंज होती है तथा साहस एवं पराक्रम की वृद्धि होती है । गीता में भगवान कृष्ण ने ज्ञान और विज्ञान से भरे उपदेश दिए है । जीवन का कोई क्षेत्र छूटा नहीं है । 

      यह उद्गार तिवराने टोला स्थित डॉ भवदेव पांडेय शोध संस्थान में गीता जयंती के अवसर पर वक्ताओं ने व्यक्त किया । प्रारंभ में गुडमार्निंग स्कूल के बच्चों ने स्वामी अड़गड़ानन्द एवं उनके गुरु परमहंस स्वामी परमानन्द का विधिवत पूजन किया । गुरु को भगवान का दर्जा देते हुए छात्रों ने पंचोपचार विधि से पूजन एवं आरती की । बच्चों ने स्वामी अड़गड़ानन्द के 'यथार्थ गीता' ग्रन्थ से गुरुवंदना का सस्वर पाठ किया ।

     इस अवसर पर आध्यात्मिक साहित्यकार सलिल पांडेय  ने कहा कि गीता मन को जीतने का मार्ग प्रशस्त करती है । मन अंतर्मुखी हुआ तो नारायण मिलेंगे और यही मन बाहर की ओर भागा तो संसार एवं उसकी विकृतियां मिलेंगी ।

     शोधछात्रों में वृजेश जायसवाल, अंकित हिंदुस्तानी, शशांक सिंह, आयुष कुमार, भारत ज्योतिदास आदि ने कहा उपस्थित अभिभावकों से कहा कि वे अपने बच्चों को संस्कार छोटी अवस्था से ही देना शुरू करें क्योंकि इस अवस्था के संस्कार पूरे जीवन को प्रभावित करते हैं ।

    महिला वक्ताओं में सावित्री पांडेय, छाया सिंह, रश्मि श्रीवास्तव, निशा  आदि ने कहा कि महिला सम्मान पर आक्रमण के खिलाफ हुए महाभारत युद्ध की अनिवार्यता पर गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बड़े अपनत्व से सन्देश दिया । इसमें मूल रूप से महिला सशक्तिकरण का भाव अंतर्निहित है । अंत में शोध संस्थान के सचिव साकेत पांडेय ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि 'गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यै: शास्त्रविस्तरै:..' श्लोक के माध्यम से कहा कि इसमें सुगीता शब्द से स्पष्ट किया गया है कि गीता का गायन किया जाना चाहिए ।

-सलिल पांडेय, मिर्जापुर ।

रिपोर्टर

संबंधित पोस्ट