शिक्षा व स्संकार के बिना जीवन अधुरा आराधना देवी

वाराणसी ।। बनारस के हरहुआ रसूलपुर रामेश्वर में चल रहे संगीतमय श्री राम कथा में बाल व्यास परम् पूज्या आराधना देवी ने कहा की आज युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति की ओर भाग रही और अपनी सभ्यता और संस्कृति को भूल रही है ।ऐसे समय में युवाओ को  शिक्षा  व् संस्कार का पान करना अति आवश्यक है।

हम शिक्षित हो  आवश्यक है पर  संस्कारवान हो ये परम् आवश्यक है । विद्या प्राप्त करने का यह अर्थ नही की हम अपने संस्कार भूल जाए बल्कि शिक्षा प्राप्त करने के बाद हम विनम्र हो जाए। हम अपने बच्चों को शिक्षा और संस्कार दोनों की ज्ञान दे । जब बात राष्ट्र की हो ,धर्म की हो , भारतीय संस्कृति की हो तब भारत का सन्त अपनी ज्ञान की झोली  फैलाने में संकोच नही करता। रामायण में सीता भक्ति है ,राम भगवान है भगवान  का निवास तो भक्ति के महल में ही होता है जहा भक्ति है वही भगवांन रहते है ।  

द्रितीय पुष्प के रूप में बाल ब्यास परमपूज्य शशिकांत महाराज ने कथा सुनाते हुए कहा कि दस हजार राजा मिलकर भी एक धनुष को नही उठा पाये क्यों की दस हजार राजा एक बार में उठा रहे थे एक होकर नही समाज का कोई बड़ा कार्य तब तक नही हो सकता जब तक समाज में सब लोग मिलकर एक न हो आज लोगो के विचार में परिवर्तन आ रहे लोग सोचते है की अच्छा काम करे तो हम करे ,हम न करे तो कोई और न करे और समाज में जब ऐसी स्थिति आ जाय तो समझ लेना धनुष वाला हाल ही होने वाला है न हिलेगा,न डुलेगा।

समाज का बड़ा से बड़ा काम वह ब्यक्ति कर सकता है जिसके जीवन में सरलता ,सहजता,और विनम्रता हो। यह हमारे शिक्षा व् संस्कार का मूलमन्त्र है। कथा में अयोध्या नगरी में आरती का भव्य नजारा दिखा जिसमे सैकड़ों नर -नारी ,बच्चे शामिल रहे और नृत्य के साथ भगवान की भक्ति में सराबोर हो गए।संकट मोचन रामलीला समिति की ओर से गौतम सिंह ,अवधेश मिश्र, रूपेश कुमार पाण्डेय , अरुण तिवारी ने आरती उतारी और अतिथियों का अंगवस्त्र भेंटकर प्रसाद वितरित किया।श्री राम व् हनुमान के जयघोष से वातावरण भक्ति मय हो गया।


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