थोड़ा हकीकत ? कोरोना अपडेट : लॉक डाउन में फंसे मजदूर कैसे भरेंगे अपना पेट ?

150 ग्राम पीला चावल से पेट की ज्वाला बुझाने का प्रयास 

भिवंडी।। पूरा देश लॉक डाउन में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से अपील कि वो घरों के बाहर लक्ष्मण रेखा खींच लें.उन्होंने कहा कि कोरोना रोकने के लिए जो जहां है वो वहीं थम जाए। लेकिन लाखों मजदूर अपने घरों से दूर फंस कर रह गए हैं जहां इनके पास खाने का भी इंतजाम नहीं है.शहर में लगभग 10 लाख प्रवासी मजदूर दिहाडी मजदूरी करते हैं जो पावरलूम, गोदाम, डांईग साईजिंग कंपनियां आदि जगहों पर काम कर जीवन यापन करते हैं. लाॅक डाउन होने के कारण कुछ दानशूरों ने इनका खुलकर मजाक उड़ाया हैं. इन दानशूरो द्वारा प्रतिबंधित प्लास्टिक थैली में 150 ग्राम उबला चावल (खिचड़ी) देकर सेल्फी खींच ली जाती हैं। इस सेल्फी को सोशल मीडिया के माध्यम से वायरल कर दानशूर की उपाधि हासिल कर लेने का गोरख धंधा जोर शोर से शहर में चल रहा हैं. इसमें शासन प्रशासन तक शामिल है.

लॉक डाउन होने के बाद कैद हो कर रह गए प्रवासी मजदूर :

बिहार राज्य के भागलपुर जिले के मूल निवासी अलीमुद्दीन भिवंडी कमाने के लिए आये थे. लॉक डाउन में भिवंडी बंद हो गई.अमीमुद्दीन जिस कारखाने में काम करते थे वह कारखाना भी कई दिनों से बंद है.इसके साथ ही जिस भिस्सी में खाना खाते थें वह भिस्सी भी बंद हो गयी. उनके पास पैसा भी नहीं हैं. अब मजबूरन 150 ग्राम पीला चावल के लिए घंटों लाईन में खड़े रहते है.
       
कई मजदूर तो ऐसे हैं जिनके पास पैसे हैं लेकिन बाजार में उनके लिए खाना नहीं है. "हमारी मदद कीजिये, हम लोग भिवंडी में बहुत बुरी तरह फंसे हुए हैं, होटल भी बंद हैं, राशन की भी सुविधा नहीं है, दूसरों के यहां खा-पी कर जिंदा हैं, हम लोगों को गांव बुला लीजिए, बहुत मेहरबानी होगी," अमीमुद्दीन सरकार से गुजारिश करते हुए कहते हैं, वो भिवंडी में एक कपड़े के कारखाने में काम करते हैं.प्रवासी मजदूर अलीमुद्दीन अंसारी जैसे मजूदरों की संख्या लाखों में है जो लॉक डाउन के चलते फंस हुए हैं.
         
कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 मार्च को एक दिन का जनता कर्फ्यू का आह्वान किया था. जिसके बाद काफी मजदूर अपने प्रदेशों को लौटने लगे. लेकिन पहले ट्रेन और बस सेवा बंद हुई. 24 तारीख को लॉकडाउन पूरे देश में लागू हो गया. रात 12 बजे से 21 दिनों के लिए पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि लॉक डाउन से देश को अरबों रुपए का नुकसान होगा लेकिन हर देशवासी की जान बचाने के लिए ये जरूरी है.वही पर 15 अप्रेल के बाद फिर से लाॅक डाउन की मुद्दत 3 मई तक बढ़ा दिया गया है।
     
लॉकडाउन के चलते दिहाड़ी मजदूरों के सामने संकट खड़ा हो गया है. इन मजदूरों के पास काम नहीं है.ट्रेन और बस समेत सभी परिवहन सेवाएं बंद होने के बाद अब घर वापसी का भी कोई विकल्प नहीं बचा है.वहीं बंदी की वजह से खाने-पीने के लिए वे दूसरों पर निर्भर हैं. ऐसे फंसे मजदूरों का विडियो काई बार सोसल मीडिया पर वायरल हो चुका हैं।
     
"कई मजदूर ट्रेन चलने तक आने में सफल भी हुए हैं मगर अपने गांव के मुख्य रेल्वे स्टेशन पर पहुंचने के बाद उन्हें अपने घर तक जाने के लिए पैदल ही यात्रा करने के लिए मजबूर होना पड़ा है.बंदी की वजह से हजारों मजदूर अभी भी रास्ते में अटके हैं," जो हाईवे पर कोरंटाइन कर के रखा गया हैं.

लॉकडाउन के कारण मजदूर पैदल ही पलायन:

मुंबई से 1400 से 1800 किलोमीटर के लिए पैदल निकल पड़े मजदूरों के सामने भूखों मरने की नौबत आ गयी है.वही पर काई मजदूरों ने बताया कि घर जाने के लिए बाहर निकलों तो पुलिस मारने के लिए दौड़ाती है.
     
"हाईवे पर मजदूर हाथ में झोला और सिर पर गठरी लिए उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के लिए पैदल ही निकल पड़े हैं.जगह- जगह पर मजदूरों की लंबी लाइन देखी गयी मैंने एक मजदूर से पूछा भी तो उनके सामने भूखों मरने की नौबत थी। क्योंकि देश में 14 अप्रैल के बाद 3 मई तक लॉकडाउन है तो उनके लिए अपने गांव आना ही विकल्प बचा था।"

मुंबई सहित अन्य शहरों से मजूदरों का पलायन:

मुंबई के अलावा सीमावर्ती शहरों से मजदूर भी परिवहन सेवा न होने की वजह से अपने गाँव पैदल ही जाने के लिए मजबूर हो रहे हैं. इसके बावजूद इन मजदूरों से सीमा पर स्वास्थ्य प्रमाणपत्र की मांग की जा रही है.समस्या यह भी है कि स्वास्थ्य प्रमाणपत्र देने के लिए सीमाई इलाकों में कोई स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं है।

 "स्थिति बहुत गंभीर है. राज्यों की सीमाओं से आवाजाही पर रोक है, इसके बावजूद पिछले दिनों लगातार प्रवासी मजदूर जा रहे हैं। जो मजदूर जा रहे हैं उनके पास पैसों की कमी है.इसके अलावा खाने के लिए भी उन्हें बहुत जद्दोजहद करनी पड़ रही है।" देश में 24 मार्च से लॉकडाउन (बंदी) की स्थिति है और सरकार ने लोगों को घर से बाहर न निकलने की सलाह दी है.मगर दिहाड़ी मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा होने से वे अपने घर जाने के लिए मजबूर हो रहे हैं.

काम न मिलने की वजह से प्रवासी मजदूरों के सामने है रोजी रोटी का संकट :


कारखाना मालिक मजदूरों को बंद की वजह से पैसे देने के लिए तैयार है. किन्तु पुलिस के डर से मालिक भी कारखानों तक नहीं आते है।"सब बंद है, खाने-पीने को कुछ नहीं मिल रहा। शहर के कपड़े कारखाने में काम कर, झोपड़-पट्टी में रहने वाले एक और मजदूर इलियास बताते हैं, "हजारों की संख्या में मजदूर शहर में फंसे हुए हैं। सब्जी-तरकारी मिल भी रही है तो दूने दामों में, ऐसे ही रहा तो हम लोगों के लिए खाना-पीना भी दूभर हो जाएगा। हमारी सरकार से गुजारिश है कि मजदूरों को उनके घर पहुंचने के लिए मदद करे।"

150 ग्राम खिचड़ी खाकर जीवन जीने के लिए मजबूर:

भिवंडी शहर में लगभग 10 लाख प्रवासी मजदूर मजदूरी करते हैंं इनके पास आधार कार्ड होता हैं किन्तु राशन कार्ड नहीं होता हैं. सरकार राशन कार्ड धारकों को मुफ्त में अनाज दे रही हैं जिसके वजह से इन्हें दो वक्त की रोटी मिल जाती हैं परन्तु जिसके पास राशन कार्ड नहीं  हैं उन्हें दानशूरों द्वारा वितरित किये जा रहे 150 ग्राम पीला चावल ( खिचड़ी) पर ही अपना जीवन यापन करना पड़ रहा हैं वह भी लेने के लिए तीन से चार घंटे कतार में खड़ा रहना पड़ रहा हैं. वही पर कुछ सामजिक स्वयं सेवी संस्थाऐ इन्हे भरपेट भोजन उपलब्ध करवा रही हैं परन्तु सरकार ऐसे सामाजिक संस्थाओं को मदत करने के लिए आगे नहीं आ रही हैं. जिसके कारण इनकी भी कमर टूट चुकी हैं.

पलायन करने के आलावा कोई दुसरा विकल्प नहीं :

ऐसे मजदूरों को पलायन करने के आलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं हैं जिसके कारण अभी तीन दिन पहले अंधेरी रात में फेना पाडा, कामतघर, पदमा नगर, बाबला कंपाउड आदि जगहों से सैकड़ों मजदूर पैदल ही अपने गांव उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के लिए रवाना हो गये. जिन्हें साई बाबा मंदिर पर नाकाबंदी पर उपस्थित पुलिस वालों ने उन्हों जबरन वापस कर दिया किन्तु उन्हें रहने तथा खाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं किया. यही मजदूर भादवड़ सोनाले गांव के रास्ते हाइवे पर जाने की कोशिश किया किन्तु कुछ गांव वाले इन्हे रोक दिया गया. 

रात के अंधेरे में जंगल के रास्ते पलायन :

सुत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अब गांव जा रहे मजदूर नाकाबंदी से पहले जंगल के रास्ते नाकाबंदी को पार कर रहे है. जिन्हें और कठिनाईयों से गुजरना पड़ रहा हैं किन्तु हर हालात में अपने गांव पहुँचने के लिए मजबूर ऐसे मजदूरों पर सरकार क्या कदम क्या कदम उठाएगी या देखने का विषय है।

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