
प्राइवेट शिक्षकों के दर्द का नहीं है कोई मसीहा
- राजेश कुमार शर्मा, उत्तर प्रदेश विशेष संवाददाता
- Apr 06, 2020
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वाराणसी ll अपनी खून पसीना को जलाकर अपने और अपने परिवार को अंधेरे में रखकर समाज में ज्ञान प्रकाशित करता है पारितोषिक के बदले 1000 ₹2000 मंथली प्राप्त होता है जिससे घर परिवार चलाना दूभर रहता है ,पर लॉक डाउन में परिवार की स्थिति और बदतर हो गई है कि बच्चों का परवरिश हो सके सके, इस तरह से इन दिनों बहुत ही दयनीय स्थिति से गुजर रहे हैं ,आपको बता दें कुछ ऐसे संस्थापक है जिनके पास खेती करने के लिए भूमि भी नहीं है और उस पर विद्यालय के अध्यापक बच्चे विद्यालय कि संचालन कितना कठिन हो सकता है आप समझ सकते हैं यदि इस पर पर सरकार ध्यान नहीं दिया तो वह और उनका परिवार समाप्त हो जाएगा यही नहीं फिर कोई भी व्यक्ति अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरणा नहीं प्रदान करेगा और साहस नहीं करेगा अध्यापक होने के बाद हम समाज में कोई ऐसा कार्य नहीं कर सकते जिससे हमारा जीव को पार्जन पार्जन आसानी से चल सके ,इसलिए सरकार से गुजारिश है युग दृष्टा प्रधानमंत्री से गुजारिश है कि प्राइवेट शिक्षकों पर ध्यान दें जिससे अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरणा और साहस प्रदान हो . आखिरकार हम सभी शिक्षक भी इसी देश- प्रदेश के नागरिक है और इसमें अध्ययनरत बच्चे भी अध्ययनरत बच्चे भी इस देश के प्रदेश के भविष्यभविष्य है ,तो सरकार हम लोगों के साथ भी न्याय क्यों नहीं कर रही है l
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